हमारे
देश में पाश्चात्य विचारधाराओं के प्रचारक अक्सर यह आरोप लगाते हैं कि भारतीय दर्शन
स्त्रियों की स्वतंत्रता का हनन करता है। उसे
पहले पिता और पति तथा बाद में पुत्र के अधीन रहने के लिये प्रेरित करता है। ऐसे पाश्चात्य
विचाराधाराओं के प्रचारकों की सक्रियता हमेशा ही भारतीय दर्शन के विरुद्ध ही दिखती
है। उनकी सक्रियता का अवलोकन करने पर यह भी पता चलता है कि उन्होंने पाश्चात्य विचाराधाराओं
को भी नहीं समझा बल्कि भारतीय दर्शन के विरुद्ध चलना है इसीलिये वह उससे नारे लेकर
यह गाते हुए अपनी विद्वता प्रदर्शित करते हैं।
हमारा भारतीय
दर्शन वैज्ञानिक आधारों पर टिका है। इसके एक नहीं वरन् अनेक प्रमाण हैं। खासतौर से
स्त्रियों को स्वतंत्र रूप से अपने निर्णय की छूट जितनी है उसे अन्य कोई विचाराधारा
नहीं देती। सबसे बड़ी बात है कि विदेशी विचारधारायें स्त्री को हमेशा ही कमजोर दिल वाला
मानती हैं। जबकि हमारा दर्शन मानता है कि स्त्रियों
में बुद्धि का स्तर पुरुषों से कम नहीं होता। यही कारण है कि स्त्रियों को समान स्तर
के परिवार, वर तथा समाज में विवाह करने का संदेश हमारा दर्शन ही देता है। यही कारण है कि परिवार
से उचित समय पर विवाह न करवा पाने की स्थिति में स्वयं ही वर चुनने का अधिकार भी मनुस्मृति
में दिया गया है।
मनुस्मृति में कहा गया है कि
------------------
त्रीणि वर्षाण्युदीक्षेत् कुमार्यूतुमती सती।
ऊर्ध्व तु कालादेताम्माद्विन्देत सदृशं पतिम्।।
हिन्दी में भावार्थ-ऋतुमती होने के बाद भी अगर पिता कन्या का तीन वर्ष तक
विवाह नहीं करे तो तो कन्या को स्वतः किसी योग्य से विवाह कर लेना चाहिए।
काममामरणात्तिष्ठेत् गृहे कन्यर्तुमत्यपि।
न चैवेनां प्रयाच्छेतु गुणहीनाय कर्हिचित्।।
हिन्दी में
भावार्थ-भले ही ऋतुमती कन्या
जीवन भर अविवाहित घर में रह जाये पर उसका विवाह गुणहीन व्यक्ति से नहीं करना चाहिए।
विदेशी
विचाराधाराओं के प्रचारक मनुस्मृति पर जातिवाद का आरोप लगाते हैं पर इसी में ही अंतर्जातीय
विवाह करने की बात भी स्वीकारी गयी है। हां,
इसमें एक बात स्पष्ट
रूप से कही गयी है कि स्त्री को अपने से कम स्तर के परिवार का वर चुनने की गलती नहीं
करना चाहिये। हमने देखा है कि स्वयं विवाह करने पर अक्सर सम्मान के लिये लड़कियों को
परिवार से प्रताड़ित करने की खबरें आती हैं उस समय हमारे देश में पैदा धर्मों का मजाक
उड़ाया जाता है जबकि ऐसी घटनाओं में देखा गया है कि लड़कियां अपने परिवार से कम स्तर
का वर चुनती हैं। कभी कभी तो वह प्रथक संस्कार
वाले वर को चुनती हैं जिसका ज्ञान उनको विवाह से पहले नहीं हो पाता। दूसरी बात यह भी है कि विवाह एक आसान क्रिया है
पर बाद में गृहस्थी की गाड़ी खींचना आसान नहीं होता। आज के आर्थिक संकट के युग में माता
पिता को बाद में भी लड़कियों की जिम्मेदारी लेनी पड़ती है या फिर इसके लिये उनको मजबूर
किया जाता है। दूसरी बात यह है कि बाहरी रूप
से अब अंतर नहीं दिखता पर सांस्कारिक रूप से पहले से अधिक कहीं अधिक अंतर समाज में
हैं। ऐसे में प्रथक संस्कार वाले वर से विवाह
करने पर लड़कियों को बाद में भारी संकट का सामना करना पड़ता है तब समाज लड़कियोें के माता
पिता की मजाक बनाते हैं। हम इस पर अधिक बहस
नहीं कर सकते पर इतना तय है कि लड़कियों को अपने हिसाब से भी योग्य वर चुनने का अधिकार
है जिसे रोका नहीं जाना चाहिये। दूसरी बात
यह है कि समय रहते हुए माता पिता को भी अपनी लड़की के लिये योग्य वह गुणवान वर चुनने
का कर्तव्य पूरा कर लेना चाहिये अन्यथा लड़की को स्वयं वर चुनने के अधिकार को चुनौती
देने का हक उनको नहीं है।
दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप’’
ग्वालियर मध्यप्रदेश
ग्वालियर मध्यप्रदेश
Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
Gwalior Madhyapradesh
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर
athor and editor-Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep",Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com
http://zeedipak.blogspot.com
यह पाठ मूल रूप से इस ब्लाग‘दीपक भारतदीप की अंतर्जाल पत्रिका’ पर लिखा गया है। अन्य ब्लाग
1.दीपक भारतदीप की शब्द लेख पत्रिका
2.शब्दलेख सारथि
3.दीपक भारतदीप का चिंतन
४.शब्दयोग सारथी पत्रिका
५.हिन्दी एक्सप्रेस पत्रिका
६.अमृत सन्देश पत्रिका
No comments:
Post a Comment