सभी जानते हैं कि शराब का नशा बुरा है पर ज्ञान साधकों की दृष्टि से उसकी बनिस्बत बुरा तो मनुष्य के अंदर ऐश्वर्य का नशा रहता है जिसके चलते वह भ्रष्ट होगा यह बात तय हो जाती है। इस नशे को हम अहंकार भी कह सकते है। अध्यात्मिक ज्ञान के अनुसार यह संसार अनेक बार बना और बिगड़ा है। प्रकृति यहां जीवन का निर्माण करती है तो मृत्यृ भी अपनी ताकत दिखाती है। मनुष्य यहां सांसरिक विषयों में इस तरह लिप्त रहता है जैसे कि वह स्थाई जीवन का लाइसैंस लेकर आया है। निरंतर संग्रह करता हुआ मनुष्य अध्यात्मिक ज्ञान से अत्यंत दूर रहना चाहता है। जैसे जैसे सांसरिक पदार्थों का संग्रह उसके बढ़ता जाता है वैसे ही उससे अधिक पाने का नशा भी चढ़ता जाता है। शराब का नशा तो चंद घंटे बाद उतर भी जाता है पर जिनके पास धन, प्रतिष्ठा और शक्ति का भंडार है वह हमेशा नशे मे ही रहते हैं। उनका भ्रष्ट होना तय होता है। भले ही वह अपने धार्मिक होने का कितना स्वांग करें पर उन पर यकीन नहीं करना चाहिए।
विदुर नीति में कहा गया है कि
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एश्यमदपापिष्ठा मदाः पानमदादयः।
ऐश्वर्यमदत्तो हि नापत्तिवा विबुध्यते।।
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एश्यमदपापिष्ठा मदाः पानमदादयः।
ऐश्वर्यमदत्तो हि नापत्तिवा विबुध्यते।।
हिन्दी में भावार्थ-मनुष्य जब मद्यपान करता है तो उसे नशा आता ही है पर जिस मनुष्य पर ऐश्वर्य का नशा चढ़ता है वह भ्रष्ट हुए बिना नहीं रहता।
एतान्यनिग्रहीतानि व्यापादयितुमप्यलम्।
अविधेया इवादान्ता हयः पथि कुसारथिम।
अविधेया इवादान्ता हयः पथि कुसारथिम।
हिन्दी में भावार्थ-जिस तरह अप्रशिक्षित घोड़े मूर्ख सारथि को राह में मार देते हैं उसी तरह जिस मनुष्य की इंद्रियां अनियंत्रित हों वह पतन को प्राप्त होता है।
हम कहते हैं कि आधुनिक सभ्यता ने भारी विकास किया है। आर्थिक और विज्ञान के क्षेत्र इसका प्रमाण भी हैं पर हम यह भी देख सकते हैं कि संसार में अपराधों का पैमाना भी बढ़ गया है। अगर तीव्रगामी वाहनों से मनुष्य को लाभ हुआ है तो अपराधी भी कम लाभान्वित नहीं हुए है। अब उनको अपराध करने के बाद भागने में भारी सुविधा होती है। अनेक लोग तो दिन में कई कई अपराध करने लगे हैं। पुराने अपराधों की संख्या बढ़ी है तो नये प्रकार के अपराधी सामने आ रहे हैं। इसका कारण शराब की बढ़ती प्रवृति के साथ यह भाव भी है जो अपराधियों में रहता कि वह पैसे के दम पर अपने आपको बचा लेंगे। यही मद अत्यंत खतरनाक है। ऐसे में ज्ञानी लोगों को सतर्कता से चलना चाहिए। जहां तक हो सके अपराधियो के साथ संपर्क करने से बचें और अपने अंदर भी हमेशा पवित्र भाव रखने का प्रयास करें।
हम कहते हैं कि आधुनिक सभ्यता ने भारी विकास किया है। आर्थिक और विज्ञान के क्षेत्र इसका प्रमाण भी हैं पर हम यह भी देख सकते हैं कि संसार में अपराधों का पैमाना भी बढ़ गया है। अगर तीव्रगामी वाहनों से मनुष्य को लाभ हुआ है तो अपराधी भी कम लाभान्वित नहीं हुए है। अब उनको अपराध करने के बाद भागने में भारी सुविधा होती है। अनेक लोग तो दिन में कई कई अपराध करने लगे हैं। पुराने अपराधों की संख्या बढ़ी है तो नये प्रकार के अपराधी सामने आ रहे हैं। इसका कारण शराब की बढ़ती प्रवृति के साथ यह भाव भी है जो अपराधियों में रहता कि वह पैसे के दम पर अपने आपको बचा लेंगे। यही मद अत्यंत खतरनाक है। ऐसे में ज्ञानी लोगों को सतर्कता से चलना चाहिए। जहां तक हो सके अपराधियो के साथ संपर्क करने से बचें और अपने अंदर भी हमेशा पवित्र भाव रखने का प्रयास करें।
संकलक, लेखक एवं संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर
writer and editor-Deepak Raj Kukreja 'Bharatdeep', Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com
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