जब तक कोई मनुष्य नित्य आत्ममंथन न करें तब तक उसे इसका आभास नहीं हो सकता है कि वह दिन में कितनी बार मूढ़ता का प्रदर्शन करता हैं। अनेक बार किसी का यह पता होता है कि अमुक आदमी उसके प्रति सद्भावना न रखता है न आगे ऐसी कोई संभावना है तब भी यह कामना करता है कि शायद स्थिति पलट जाये। इतना ही नहीं कुछ लोग तो ऐसे भी हैं जो अपने हित की कामना करने वालों को संदेह की दृष्टि से देखता है और जो संदेहपूर्ण है उसके हितचिंतक होने की कामना करता है।
समाज में सभी लोग मूर्ख नहीं होते पर सभी ज्ञानी भी नहीं होते। कुछ लोगों में किसी के लक्ष्य का विध्वंस करने या देखने की अत्यंत उत्कंठा होती है। वह हर समय किसी न किसी की हानि का कामना करते हैं। ऐसे मनुष्य के साथ संपर्क रखना भी अत्यंत खतरनाक हो सकता है। किसी का बनता काम बिगाड़ने और बिगाड़ कर बदनाम करने की प्रवृत्ति अनेक लोगों में होती है। ऐसे लोगों से यह अपेक्षा करना कि वह कभी सुधर जायेंगे एकदम व्यर्थ है। अगर कोई ऐसी अपेक्षा करता है तो वह स्वयं महामूर्ख है।
विदुर नीति में कहा गया है कि
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अकामान् कामयनि यः कामयानान् परित्यजेत्।
बलवन्तं च यो द्वेष्टि तमाहुर्मुढचेतसम्।।
बलवन्तं च यो द्वेष्टि तमाहुर्मुढचेतसम्।।
हिन्दी में भावार्थ-जो मनुष्य अपने से प्रेम न करने वाले को प्रेम करता है और प्रेम करने वाले को त्याग देता है वह मनुष्य मूढ़ चेतना वाला कहलाता है।
अमित्रं कुरुते मित्रं मित्रं देष्टि हिनस्ति।
कर्म चारभते दुष्टं तमाहुर्मुढचेतसम्।।
कर्म चारभते दुष्टं तमाहुर्मुढचेतसम्।।
हिन्दी में भावार्थ-जो मनुष्य शत्रु को मित्र और मित्र को शत्रु बनाने का प्रयास करता है वह मूढ़ प्रवृत्ति का होता है।
संसारयति क1त्यानि सर्वत्र विचिकित्सते।
चिरं करोति क्षिप्रार्थे स मूढो भरतर्षभ।।
चिरं करोति क्षिप्रार्थे स मूढो भरतर्षभ।।
हिन्दी में भावार्थ-जो मनुष्य अपने काम को व्यर्थ ही फैलाता है। सर्वत्र ही संदेह करता है और शीघ्र होने वाले काम मे विलंब करता है वह अत्यंत मूढ़ है।
अपने काम को लापरवाही या बेईमानी से करना भी मूढ़ प्रवृत्ति का प्रमाण है। कबीर दास जी भी कह गये हैं कि ‘‘कल करे सो आज कर, आज करे सो अब,
पल में परलय हो जायेगी बहुरि करेगा कब’’। कुछ लोग अपना काम अनावश्यक रूप से फैला लेते हैं। कुछ अपने काम में यह सोचकर विलंब करते हैं कि करना तो हमें ही है। यह प्रवृत्ति पतन की ओर धकेलने वाली है।
कहने का अभिप्राय यह है कि हमें दिन प्रतिदिन अपने कार्य, व्यापार और आचरण पर दृष्टिपात रखते हुए दूसरों की भी प्रकृत्ति, लक्ष्य और स्वभाव का अध्ययन करते रहना चाहिये। ऐसा न कर हम स्वयं को धोखा देंगे और यही मूढ़ प्रवृत्ति है जो घातक कहलाती है।
संकलक, लेखक एवं संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर
writer and editor-Deepak Raj Kukreja 'Bharatdeep', Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com
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