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Friday, January 25, 2013

कौटिल्य का अर्थशास्त्र-बुद्धिमान के लिये कोई लक्ष्य असाध्य नहीं (economic of kautilya-buddhiman ke liye koyee lakshya asadhya nahin)

       सामान्य और असाधारण और मनुष्य में अंतर केवल बुद्धि के उपयोग का ही होता है।  सामान्य मनुष्य थोड़े प्रयास में बहुत बड़ी उपलब्धि अतिशीध्र चाहता है। किसी विषय में ज्ञान अल्प हो तब भी वह स्वयं को  महाज्ञानी मानकर उसमें सक्रियता दिखाता है। सफल हो गया  तो वाह वाह नहीं तो फिर चुप बैठ जाता है।  इसके विपरीत असाधारण मनुष्य पूर्ण ज्ञान कर अपनी साधना करता है। उसके लिये कोई वस्तु असाध्य नहीं है।  वह लोहे को हाथ से नहीं तोड़ता बल्कि उसे गलाता है।  उसके प्रयासों में कर्मठता रहती है क्योंकि वह अपने विषय का पूर्ण ज्ञान कर अपने प्रयास आरंभ करता है।  सामान्य मनुष्य अपनी नाकामी के लिये दूसरों पर दोष लगाता है जबकि कर्मठ मनुष्य को कभी नाकामी का सामना करना ही नहीं पड़ता।
कौटिल्य का अर्थशास्त्र कहता है कि
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   न किञ्वित्वचिदस्तीह वस्त्वसाध्यं विपश्चिाताम्।
   अयोऽमेषमुपायेन द्रवतामुपनीयते।।
   हिन्दी में भावार्थ-बुद्धिमानों के लिये कोई वस्तु प्राप्त करना न कठिन है न कोई लक्ष्य असाध्य है।  लोहा अभेद्य है पर प्रयास से उसे गलाया जा सकता है।

      वाह्यमानमयःखण्डं स्कन्धनैवापि कृन्तति।
       तदल्पमपि धारावद्भवतीप्सितिसिवद्धये।।
       हिन्दी में भावार्थ-लोहे का बोझ कंधे पर ढोने पर भी नहीं काटता पर धारवाला होने पर थोड़ा लगने से भी रक्त निकलने लगता है।
        अपने जीवन में बुद्धि की धार तीक्ष्ण करना चाहिये। इसके लिये सबसे अच्छा उपाय है कि प्रातः प्राणायाम और ध्यान किया जाये। आज के भौतिक युग में जब समाज में संवेदनायें कम हो गयीं है तब किसी से हृदय से सद्भाव की आशा करना व्यर्थ है-जबानी जमा खर्च करने वाले बहुत मिल जाते हैं पर उनके सद्भाव को हृदय स्वीकार नहीं करता। लोगों को अपने स्वार्थ पूरे करने से ही समय नहीं मिलता।  इसलिये अकेले होने का तनाव सभी के मस्तिष्क में रहता है जो अंततः अनेक मनोरोगों का उत्पति का कारक बनता है।  ऐसे में प्राणायाम और ध्यान ही ऐसे साधन है जो साधक की बुद्धि को तीक्ष्ण कर सकते हैं। इसके अलावा भारतीय अध्यात्मिक ज्ञान का समय समय पर अध्ययन करना चाहिये जिसमें जीवन के सांसरिक विषयों में सक्रियता के तरीके बताये जाते हैं।
संकलक, लेखक एवं संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर
writer and editor-Deepak Raj Kukreja 'Bharatdeep', Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com
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