अक्सर कहा जाता है कि सभी धर्म मनुष्य को शांति, अहिंसा और प्रेम से रहना
सिखाते हैं। सच बात तो यह है भारतीय अध्यात्मिक
ज्ञान दर्शन की विश्व की किसी अन्य विचाराधारा से कोई तुलना नहीं है। यहां तक कि विश्व की अनेक विचाराधाराओं की किताबों की तुलना
श्रीमद्भागवत ग्रंथ से करते हुए कहा जाता है कि सभी प्रेम अहिंसा तथा उदार रहना सिखाती
हैं। यह केवल एक नारा भर है। श्रीमद्भागवत
गीता तथा हमारे अन्य शास्त्र केवल इष्ट स्मरण की आराधना करना ही नहीं सिखाते वरन् अपने
मन मस्तिष्क के विकार निकालने की प्रेरणा भी देते हैं। जबकि अन्य विचारधारायें विकार
निकलाने की कला नहीं सिखातीं।
पतंजलि योग शास्त्र में
कहा गया है कि
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कायेन्दियसिद्धिरशुद्धिक्षयान्तपस।
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हिन्दी में भावार्थ-तप के प्रभाव से जब अशुद्धि
का नाश हो जाता है तब शरीर और इंद्रियों की सिद्धि भी हो जाती है।
सर्वशक्तिमान के
किसी भी रूप की आराधना हो मन मस्तिष्क में शुद्धता के बिना फलीभूत नहीं हो सकती। हम जब विश्व में शांति तथा सुख की कल्पना करते हैं
तो उसके लिये भारतीय अध्यात्मिक दर्शन की राह चलना आवश्यक है। सबसे महत्वपूर्ण बात
यह कि भारतीय दर्शन में अध्यात्मिक तथा सांसरिक विषय अलग कर संदेश दिया जाता है जबकि
पश्चात्य विचाराधाराओं में सांसरिक विषयों से ही सर्वशक्तिमान पाने की कल्पना की जाती
है। हमारा मानना है कि विश्व में शांति, एकता, अहिंसा तथा विकास का वातावरण
स्थापित करने के लिये भारतीय अध्यात्मिक दर्शन का प्रचार प्रमाणिक विद्वानों के माध्यम
से किया जाना चाहिये। ऐसे ही विद्वान प्रमाणिम माने जा सकते हैं जो अपने जीवन निर्वाह
के लिये गृहस्थाश्रम या धर्म में स्थित होकर योग साधना की शिक्षा देते हुए विचरते हैं। सन्यास के नाम पर पंचतारा सुविधाओं में आश्रमों
के निवासियों को विद्वता की दृष्टि से प्रमाणिक नहीं मान जा सकता। जयश्रीराम, जयश्रीकृष्ण, सुप्रभात।
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दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप’’
ग्वालियर मध्यप्रदेश
ग्वालियर मध्यप्रदेश
Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
Gwalior Madhyapradesh
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर
athor and editor-Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep",Gwalior
http://zeedipak.blogspot.comयह पाठ मूल रूप से इस ब्लाग‘दीपक भारतदीप की अंतर्जाल पत्रिका’ पर लिखा गया है। अन्य ब्लाग
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