आमतौर से हम सभी
अपने आसपास सक्रिय लोगों पर यह सोचकर यकीन करते हैं कि समय पड़ने पर वह हमारे काम
आयेंगे। अनेक लोगों से इसी आशा में संपर्क रखते हुए बरसों बीत जाते हैं पर समय आने
पर उनसे निराशा हाथ लगती है। शैक्षणिक, व्यवसायिक तथा सेवा के
स्थानों पर लोगों के आपसी संपर्क सहजता से बनते हैं। साथ चाय पीने, भोजन करने अथवा घूमने जाने से संपर्क में आये
व्यक्तियों के प्रति एक विश्वास जरूर बनता है।
खासतौर से आज के युग में जब लोगों को अपने परिवार और शहर से बाहर जाकर काम
करने के लिये बाध्य होना पड़ता है तब उनके दिमाग में अपने इर्दगिर्द सहजता से निकट
आये लोगों के प्रति सकारात्मक भाव बन ही जाता है।
कविवर रहीम कहते हैं कि--------------रहिमन तीन प्रकार ते हित अनहित पहिचानि।पर बस परै, परोस बस, परे मामिला जानि।।सामान्य हिन्दी में भावार्थ-अन्य व्यक्ति, पड़ौसी और अपनी शक्ति के बाहर कार्य होने पर ही अपने हितैषी और शत्रु को पहचान लेना चाहिये।
यह अलग बात है
कि समय आने पर उन्हें यथार्थ का पता चल जाता है। अनेक बार तो यह देखा गया है कि
अपने परिवार तथा शहर से बाहर निकलकर रहने वाले लोग अक्सर अन्य व्यक्तियों पर यकीन
कर धोखा खा जाते हैं। खासतौर से युवा महिलाओं को अनेक बार अन्य व्यक्तियों ये
प्रताड़ित होने के समाचार आते हैं। हम आजकल
अंतर्जाल पर भी यह देख रहे हैं कि अनेक लड़कियां बिना सोचे समझे केवल आकर्षक
प्रोफाइल पर देखकर प्रभावित हो जाती हैं और बाद में उनके लिये घातक परिणाम निकलता
है।
इसलिये
जब तक किसी के विचार, व्यवहार
तथा व्यक्तित्व का प्रमाणीकरण न हो जाये तब तक उस पर विश्वास नहीं करना चाहिये।
दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप’’
ग्वालियर मध्यप्रदेश
ग्वालियर मध्यप्रदेश
Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
Gwalior Madhyapradesh
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर
athor and editor-Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep",Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com
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यह पाठ मूल रूप से इस ब्लाग‘दीपक भारतदीप की अंतर्जाल पत्रिका’ पर लिखा गया है। अन्य ब्लाग
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