कुछ समझदार लोग अब इस बात से प्रसन्न है कि वह चैन से टीवी पर समाचार देख
सकेंगे। कथित विश्व कप से-जिसे कुछ विशेषज्ञ अंतर्राष्ट्रीय कप ही मानते हैं- बीसीसीआई
की टीम बाहर हो गयी है। इसलिये भारत के सामान्य सभ्रांत लोग रविवार को आराम से इधर
उधर घूमने जा पायेंगे। समझदार मायने क्या?
क्रिकेट के व्यवसाय की असलियत जानते हुए भी कभी कभी
प्रचार माध्यमों के दबाव में देशभक्ति से ओतप्रोत होकर कुछ लोग मैच देखने लग ही जाते
हैं। कहा जाता है कि बंदर कितना भी बुढ़ा
जाये गुलाटियां लगाना नहीं भूलता। ऐसे ही
फिक्सिंग और सट्टे के प्रभाव के समाचार टीवी चैनलों पर देखने बाद अनेक ऐसे लोग जो
युवावस्था से मैचे देखते हुए चले आ रहे थे- अब तो उनके बच्चे भी युवा है-इससे
विरक्त हो गये थे, पर अब कभी न कभी टीवी पर चिपक ही जाते हैं। मालुम है कि सब कुछ पटकथा जिस तरह लिखी गयी है
उसके अनुसार ही मैच होते हैं फिर भी मन है कि मानता नहीं।
ऐसे ही हमारे एक मित्र ने जब एक टीवी चैनल पर सुना कि सट्टबाजों की पसंदीदा
की टीम है तो विचलित हो गये। हमसे इस
समाचार का मतलब पूछा। हम ज्ञान साधक होने के नाते दूसरे का मन खराब नहीं करते
इसलिये अपनी अनभिज्ञता जाहिर की।
वह बोले-‘‘यार, हमने देखा है कि सट्टेबाजों की पसंदीदा टीम हारती नहीं है।’’
हमने कहा-‘‘तब मैच मत देखना!’’
अगले दिन वह मिले तो बोले-‘यार, टीवी चैनल वाले भी गजब है। उनका
इशारा जो समझ ले वही बुद्धिमान है।’’
जब बीसीसीआई के टीम ने एसीबी का पहला ही विकेट जल्द झटक लिया तो वह काम पर
जाना छोड़कर घर में ही जम गये। तब वह सोच रहे थे कि संभव है कि इस बार सट्टेबाज
नाकाम हो जायें पर जब दूसरा विकेट नहीं मिला और तेजी से रन बन रहे थे तो वह घर से
चले गये। बाद में कहीं दूसरी जगह बीसीसीआई
की पारी देखने लगे। जब पहले विकेट की साझेदारी जोरदार चल रही थी तब वह सोच रहे थे
कि आज तो सट्टेबाज फ्लाप हो रहे हैं। मगर यह क्या? थोड़ी देर बाद ही एक के एक खिलाड़ी होते गये। जिस तरह बीसीसीआई के दूल्हे एक
के बाद एक बाराती बनकर बाहर जा रहे थे उससे उनका माथा ठनका। तब यह बात उनके समझ
में आयी कि अगर मामला क्रिकेट का हो तो सट्टेबाज
भारतीय ज्योतिष शास्त्र में अधिक दक्ष लगते हैं।
बीसीसीआई की टीम ने लगातार सात मैच जीतकर जो पुराने क्रिकेट प्रेमियों में
उम्मीद जगाई थी वह टूट गयी। हम दूसरों की
क्या कहें जो इन मैचों पर संदिग्ध दृष्टि रखते हैं वह भी प्रचार के झांसे आ ही
जाते हैं तो उन लोगों की क्या कहें जो इसे नहीं जानते। बहरहाल हमारे मित्र इस बात
पर खुश थे कि उन्हें इस भ्रम से दो दिन पहले मुक्ति मिल गयी वरना बीसीसीआई की टीम अगर सेमीफायनल जीत जाती तो फायनल तक बेकार वक्त खराब
होता। हमें हैरानी हुई लोग ऐसा भी सोच
सकते हैं। धन्य है कि क्रिकेट की महिमा!
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दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप’’
ग्वालियर मध्यप्रदेश
ग्वालियर मध्यप्रदेश
Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
Gwalior Madhyapradesh
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर
athor and editor-Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep",Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com
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यह पाठ मूल रूप से इस ब्लाग‘दीपक भारतदीप की अंतर्जाल पत्रिका’ पर लिखा गया है। अन्य ब्लाग
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