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Friday, March 21, 2014

जीवन में सकारात्मक भाव अपनाना चाहिये-विदुर नीति के आधार पर चिंत्तन लेख(jiwan mei sakaratmak bhav apnana chahiye-vidur neeti ka aachar par chinttan lekh)



      मनुष्य के लिये यह संसार वैसा ही बन जाता है जैसा उसका संकल्प होता है। जिनके अंदर नकारात्मक प्रकृत्ति है वह हमेशा ही तनाव में रहते हैं। वह कोई भी काम प्रारंभ करते हैं तो संकटों का आना प्रारंभ हो जाता है जिससे वह उसे बंद कर देते हैं । ऐसे लोग हमेशा ही वार्तालाप में मित्रों के सामने अपने तनाव तथा बीमारियों की चर्चा कर उन्हें भी निराश करते हैं।  इसके विपरीत जिनका मस्तिष्क सदैव सकारात्मक विचारों से प्रेरित होकर काम करते हैं उनके लिये उनका यही संसार अत्यंत अद्भुत हो जाता है। कहा जाता है कि जैसा बोओगे वैसा काटोगे।  यही स्थिति मनुष्य की कार्यशैली पर भी लागू होती है। एक व्यक्ति अहंकारवश किये गये आग्रह को ठुकरा देता है पर वही नम्रता से कहने पर मान जाता है। उसी तरह कुछ लोग काम निकालने के लिये अत्यंत विनम्रता का भाव दिखाते हुए सफल होते हैं जबकि अहंकार दिखाने वाले हमेशा ही निराशा का शिकार होते हैं।
      कहने का अभिप्राय यह है कि  हमें अपने जीवन में सकारात्मक दृष्टिकोण अपनाना चाहिये। हर व्यक्ति के अंदर बीमारियां तथा तनाव होते हैं पर कुछ उनको भुलाकर अपनी दिनचर्या उत्साह से करते हैं तो कुछ उनका बोझ ढोते हुए चलते हैं। जिनके मन में उत्साह है वह जीवन में ऊंचे लक्ष्य प्राप्त करते हैं पर जो मस्तिष्क में बीमारी, निराशा तथा तनाव का बोझ लेकर चलते हैं वह न केवल स्वयं नाकाम रहते हैं वरन् अपने संगी साथियों को भी हताश करते हैं।

विदुर नीति में कहा गया है कि
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न श्रद्दधाति कल्याणं परेभ्योऽप्यात्मशङ्कितः।
निराकरोति मित्राणि यो दै सोऽधमपूरुषः।।
     हिन्दी में भावार्थ-जिनका अपने पर ही विश्वास नहीं है वह अन्य व्यक्ति से भी अपने कल्याण की अपेक्षा नहीं कर पाते। अपने मित्रों को भी अपने से भी परे करता है। ऐसा व्यक्ति अधम माना जाता है।

      जैसा कि कुछ लोग पानी से  आधे भरे  ग्लास के लिये कहते हैं आधा खाली हैदूसरे कहते हैं कि आधा भरा हुआ है। यह दृष्टिकोण की भिन्नता की पहचान कराने वाला उदाहरण है।  कोई वस्तु हमारे पास नहीं है उसकी चिंता करने की बजाय जो उपलब्ध है उससे अपने काम में बेहतर परिणाम निकालने का प्रयास करना सकारात्मक दृष्टिकोण का भावा दर्शाता है।  इसके विपरीत साधनों की कमी, सहयोगियों के उपेक्षा भाव तथा लक्ष्य की विकटता का विचार करते हुए निष्क्रिय हो जाना नकारात्मक भाव को दर्शाता है।  नकारात्मक भाव के लोगों के पास मित्र न के बराबर होते हैं और सकारात्मक भाव के लोगों के पास एक बड़ा मित्र समूह हो जाता है। इसलिये जीवन में सकारात्मक भाव अपनाते हुए अपना कर्म करना चाहिये।

दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप’’
ग्वालियर मध्यप्रदेश
Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
Gwalior Madhyapradesh
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर 

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