मूलतः
यह एक प्रकार से निराशावादी दृष्टिकोण हो सकता है पर सत्य तो सत्य ही होता है कि इस
संसार में जिस व्यक्ति की जैसी प्रकृति एक बार बन गयी और अगर उसमें विकृतियां हैं तो
फिर किसी भी प्रकार से उसकी बुद्धि को शुद्ध नहीं किया जा सकता। बचपन से ही जैसी प्रवृत्तियां मनुष्य मन में स्थापित
हो जाती हैं तो वह अंत तक उसके साथ ही चलती हैं।
जिनका मन बचपन से ही अध्यात्म की तरफ मुड़ जाये तो उनके विचार और व्यवहार में शुद्धता स्वतः ही बनी
रहती है पर जिसे केवल सांसरिक विषयों का ही अध्ययन कराया जाये उसमें उन्माद, क्रोध, अहंकार तथा लोभ की प्रवृत्ति स्वतः
आ जाती हैं। यह अलग बात है कि कोई अध्यात्मिक साधना की तर्फ मुड़ जाये तो वह अपने निकृष्ट
प्रकृत्तियों पर स्वतः निंयत्रण कर लेता है मगर ऐसा विरले ही लोगों के साथ होता है।
आचार्य चाणक्य कहते हैं कि
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दुर्जनं सज्जनं कर्तृमुपायो न हि
भूतले।
अपानं शतधा धौतं न श्रेष्ठमिन्द्रियं
भवेत्।।
सामान्य हिन्दी भाषा में भावार्थ-दुष्ट व्यक्ति को सज्जन बनाने
के लिए इस धरती पर कोई उपाय नहीं है। जैसे
मल त्याग करने वाली इंद्रियां सौ बार धोने पर भी श्रेष्ठ इंद्रियां नहीं बन पातीं।
दुर्जन
से सज्जन बन जाने की धटनायें अपवाद स्वरूप हो जाती है। ऐसा भी होता कि किसी स्वार्थी प्रकृति के मनुष्य
के साथ कोई दुर्घटना घट जाये तब वह मानसिक रूप से टूट जाता है। यह सही है कि ऐसे में
उसके व्यवहार में परिवर्तन आता है। आमतौर से
दुष्ट प्रकृति के मनुष्य में कभी सुधार नहीं
होता। पाश्चात्य विचारधाराओं के अनुसार दुष्ट व्यक्ति में सुधार हो सकता है यहां तक
तो ठीक है पर वह इसे भी मानती हैं कि समूचा समूह ही भ्रंष्ट ये इष्ट बनाया जा सकता
है। यही बात भारतीय अध्यात्म से मेल नहीं खाती।
किसी दुष्ट समूह में एक दो व्यक्ति सुधर जाये पर सभी सदस्य देवता नहीं बन सकते। दूसरी
बात यह भी कि किसी मनुष्य में सुधार प्राकृतिक कारणों से आता है पर कोई दूसरा मनुष्य
यह काम करे यह संभव नहीं है। इसलिये जिनके बारे में हमारी धारणा अच्छी नहीं है उनसे
व्यवहार ही नहीं रखना चाहिये। रखें तो किसी प्रशंसा की उम्मीद करना व्यर्थ है।
दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप’’
ग्वालियर मध्यप्रदेश
ग्वालियर मध्यप्रदेश
Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
Gwalior Madhyapradesh
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर
athor and editor-Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep",Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com
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