हमारे अध्यात्मिक ग्रंथ जहां इस देह को पांच तत्व-जल, प्रथ्वी, आकाश, वायु और अग्नि-को न केवल जीवन निर्माता वरन् स्वास्थ्य रक्षक भी मानते हैं। यही कारण है कि शुद्ध जल और वायु के सेवन के साथ ही सूर्य की किरणों को भी बीमारियों में एक दवा की तरह उपयोगी माना जाता है। कहा जाता है कि मनुष्य अगर शुद्ध जल का सेवन करे तो वह जीवन भर बीमार न पड़े उसी तरह प्रातः अगर वह शुद्ध वायु का सेवन करे तो हमेशा स्वस्थ बना रहेगा। सर्दियों में सूर्य का सेवन करना अनेक शारीकिर और मानसिक व्याधियों को दूर रखता है।
हमारे देश के प्राचीन ग्रंथ योग विद्या को जीवन जीने की कला मानते हैं। श्रीमद्भागवत् गीता में तो स्पष्ट रूप से शुद्ध स्थान पर आसन लगाना और प्राणायाम करना यज्ञ-हवन के समान बताया गया है। श्रीमद्भागवत गीता में कहा गया है कि गुण ही गुणों को बरतते हैं। इस सिद्धांत को हम आज प्रथ्वी के प्रदूषित वातावरण के साथ ही समाज में व्याप्त अनेक व्याधियों के प्रकटीकरण के रूप में देख सकते हैं। कहा जाता है कि इस समय पूरे विश्व में गैसों की वजह से ओजोन पर्त में छेद हो गये जिनसे पार होकर सूर्य की किरणें सीधे जमीन पर आती हैं। इससे गर्मी बढ़ रही है। मौसम अप्रत्याशित रूप से बदलकर विश्व के अनेक भूभागों पर संकट पैदा कर रहा है। इसका दुष्प्रभाव इस धरती पर विचरने वाले हर जीव पर बुरा पड़ रहा है। पशु, पक्षियों तथा जलचरों पर पड़ने वाले प्रभावों को हम नहीं देख सकते पर मनुष्यों की देह और और दिमाग जिस तरह विकृतियों का शिकार हो रहे हैं उससे तो यही लगता है कि विश्व का भविष्य भारी संकट में है।
सबसे बड़ी बात यह है कि लोगों को रहन सहन का स्वरूप बदल गया है। शहरी क्षेत्रों में अधिकतर लोग सूरज उगने के बाद उठते हैं जबकि कहा जाता है कि सूर्योदय से पहले उठने वाले से नब्बे फीसदी बीमारियां दूर रहती हैं। हम यह भी देखते हैं कि ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले या वहां के परिवेश में पले मगर अब शहर में रहने वाले लोग अपनी प्रातः जल्दी उठने की पुरानी आदत के चलते कम ही बीमार देखे जाते हैं। इससे साफ जाहिर होता है कि प्रातः सुबह उठकर शुद्ध वायु का सेवन करना एक तरह से देवता की प्रार्थना करना ही है। यह तो आधुनिक विज्ञान भी मानता है कि शुद्ध जल और वायु का सेवन स्वास्थ्य के लिये लाभदायक है।
हमारे देश के प्राचीन ग्रंथ योग विद्या को जीवन जीने की कला मानते हैं। श्रीमद्भागवत् गीता में तो स्पष्ट रूप से शुद्ध स्थान पर आसन लगाना और प्राणायाम करना यज्ञ-हवन के समान बताया गया है। श्रीमद्भागवत गीता में कहा गया है कि गुण ही गुणों को बरतते हैं। इस सिद्धांत को हम आज प्रथ्वी के प्रदूषित वातावरण के साथ ही समाज में व्याप्त अनेक व्याधियों के प्रकटीकरण के रूप में देख सकते हैं। कहा जाता है कि इस समय पूरे विश्व में गैसों की वजह से ओजोन पर्त में छेद हो गये जिनसे पार होकर सूर्य की किरणें सीधे जमीन पर आती हैं। इससे गर्मी बढ़ रही है। मौसम अप्रत्याशित रूप से बदलकर विश्व के अनेक भूभागों पर संकट पैदा कर रहा है। इसका दुष्प्रभाव इस धरती पर विचरने वाले हर जीव पर बुरा पड़ रहा है। पशु, पक्षियों तथा जलचरों पर पड़ने वाले प्रभावों को हम नहीं देख सकते पर मनुष्यों की देह और और दिमाग जिस तरह विकृतियों का शिकार हो रहे हैं उससे तो यही लगता है कि विश्व का भविष्य भारी संकट में है।
सबसे बड़ी बात यह है कि लोगों को रहन सहन का स्वरूप बदल गया है। शहरी क्षेत्रों में अधिकतर लोग सूरज उगने के बाद उठते हैं जबकि कहा जाता है कि सूर्योदय से पहले उठने वाले से नब्बे फीसदी बीमारियां दूर रहती हैं। हम यह भी देखते हैं कि ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले या वहां के परिवेश में पले मगर अब शहर में रहने वाले लोग अपनी प्रातः जल्दी उठने की पुरानी आदत के चलते कम ही बीमार देखे जाते हैं। इससे साफ जाहिर होता है कि प्रातः सुबह उठकर शुद्ध वायु का सेवन करना एक तरह से देवता की प्रार्थना करना ही है। यह तो आधुनिक विज्ञान भी मानता है कि शुद्ध जल और वायु का सेवन स्वास्थ्य के लिये लाभदायक है।
सामवेद की एक प्रार्थना में लिख गया है कि
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आषुरर्ष बृहहन्मते परि प्रिवेण धामना।
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आषुरर्ष बृहहन्मते परि प्रिवेण धामना।
प्रार्थना का हिन्दी में भावार्थ-हे बुद्धिमान वायु देवता! अपने गुणों सहित विचरण कर।
सुत एति पवित्र आ त्विषिं दधान ओजसा।
विचक्षाणे विरोचयन्।
हिन्दी में प्रार्थना-ज्ञान शक्ति स्वयं का हित करने के साथ ही निजी व्यक्तित्व को यशस्वी बनाती है।
अध्यात्मिक ज्ञान को लेकर केवल सन्यासियों के लिये ही मानना अज्ञान का प्रमाण है। दरअसल अध्यात्मिक ज्ञान मनुष्य को मानसिक रूप से अत्यंत दृढ़ बनाता है। सच बात तो यह है कि हम अपनी दैहिक हलचलों को ही नहीं समझ पाते तो उसमें विराजमान अहंकार, बुद्धि और मन जैसी प्रकृतियों को पहचानना भी कठिन है। यह शक्ति केवल तत्वज्ञान के अध्ययन से ही मिलती है। जब आदमी को तत्वज्ञान मिल जाता है तब वह इस संसार के सत्य और असत्य को समझ लेता है। तब वह न केवल अपने निजी काम सहजता से करता है बल्कि दूसरे का भी मददगार बनता है जिससे उसका समाज में यश बढ़ता है।
अध्यात्मिक ज्ञान को लेकर केवल सन्यासियों के लिये ही मानना अज्ञान का प्रमाण है। दरअसल अध्यात्मिक ज्ञान मनुष्य को मानसिक रूप से अत्यंत दृढ़ बनाता है। सच बात तो यह है कि हम अपनी दैहिक हलचलों को ही नहीं समझ पाते तो उसमें विराजमान अहंकार, बुद्धि और मन जैसी प्रकृतियों को पहचानना भी कठिन है। यह शक्ति केवल तत्वज्ञान के अध्ययन से ही मिलती है। जब आदमी को तत्वज्ञान मिल जाता है तब वह इस संसार के सत्य और असत्य को समझ लेता है। तब वह न केवल अपने निजी काम सहजता से करता है बल्कि दूसरे का भी मददगार बनता है जिससे उसका समाज में यश बढ़ता है।
दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप’’
ग्वालियर मध्यप्रदेश
Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
Gwalior Madhyapradesh
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर
athor and editor-Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep",Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com
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