हमारे देश में लोग आमतौर से पहुंच वाले या पहुंचे हुए लोगों से
अपने संबंध की चर्चा करते हुए अत्यंत प्रसन्न होते हैं। सच बात तो यह है
कि आज के युग में बिना छल कपट या धोखे को कोई पहुंचा हुआ बन सकता है न
किसी की पहंुच हो सकती है। आजकल के युग में जब राज्य का हस्तक्षेप समाज
में अधिक हो गया है तब लोगों की मानसिकता यह हो गयी है कि उन्हें किसी न
किसी तरह से समाज में राज्य की शक्ति के सहारे प्रतिष्ठा बनें। खासतौर से
जब प्रचार माध्यम अपराधियों के इतिहास के बखान के साथ उनके प्रभावशाली
व्यक्तित्व महिमामंडन अवश्य करते हों। इससे आमजनो का यह लगता है कि राज्य
के अंदर से कोई ज्ञात या अज्ञात शक्ति उनके साथ होने से किसी भी प्रकार का
अपराध करने के बावजूद वह दंड से बच जाते हैं। ऐसे में समाज के युवा वर्ग
के मन में किसी न किसी तरह से उनको छोटे मोटे अपराध करने पर दंड से बचने
के लिये पहुंच वाले या पहुंचे हुए लोगों से संपर्क बढ़ाने की आकांक्षा
पनपती है। अपराध न करने की इच्छा करने के बावजूद यदि कोई त्रुटि हो जाये
तो उसे पहुंच वाले या पहुंचे हुए आदमी से संरक्षण मिल सकता है यह सोचकर लोग
अपने आपको सुरक्षित अनुभव करते हैं।
यजुर्वेद में कहा गया है कि
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साधुभ्यस्ते निवर्तन्ते पुत्र मित्राणि बान्धवाः।
य च तैः गन्तारस्तद्धर्मात्सकुकृतं कुलम!।।
हिन्दी में भावार्थ- जो साधु बन जायें या जिन मनुष्य का स्वभाव
साधु हो जाये अपने परिवार के लोग ही उसकी उपेक्षा करने लगते हैं। मगर जो लोग साधुओं की संगत करते हैं उनका आचरण स्वतः अनुकूल हो जाता है और वह प्रतिष्ठा अर्जित करते हैं।
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साधुभ्यस्ते निवर्तन्ते पुत्र मित्राणि बान्धवाः।
य च तैः गन्तारस्तद्धर्मात्सकुकृतं कुलम!।।
हिन्दी में भावार्थ- जो साधु बन जायें या जिन मनुष्य का स्वभाव
साधु हो जाये अपने परिवार के लोग ही उसकी उपेक्षा करने लगते हैं। मगर जो लोग साधुओं की संगत करते हैं उनका आचरण स्वतः अनुकूल हो जाता है और वह प्रतिष्ठा अर्जित करते हैं।
इस प्रवृत्ति ने समाज में ऐसे लोगों की छवि को कमतर बना दिया है जो
ईमानदारी, आदर्श चरित्र तथा सरलता के साथ जीवन जीते हैं। अब तो केवल उन
लोगों की छवि उज्जवल हो गयी है जो अपराध के दंड से बचाने के लिये समर्थ
होते हैं। साधु स्वभाव का आदमी समाज के लिये किसी काम का नहीं है। ज्ञानी
वही है जो उसे बखान करने के साथ ही पर्दे के पीछे गलत काम वाले लोगों को
सरंक्षण देने का माद्दा रखता है। इसके बावजूद यह भी सच है कि कोई आदमी तभी
तक ही अपराध कर बचा रह सकता है जब तक पानी सिर के ऊपर तक नहीं निकल जाये।
अगर इस धरती पर अपराधी को राज्य से दंड नहीं मिलता तो सर्वशक्तिमान अपनी
ताकत दिखाता है। जिन लोगों ने असाधु पर शक्तिशाली लोगों से संपर्क बनाकर
अपराध किये हैं अंततः समय आने पर उनको दंड मिल ही जाता है। जब काठ की
हांडी चौराहे पर फूटती है तो शाक्तिशाली लोग अपने प्यादों को फंसा ही देते
हैं। इसलिये जहां तक हो सके साधु स्वभाव के लोगों से संपर्क रखना चाहिये।
दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप’’
ग्वालियर मध्यप्रदेश
ग्वालियर मध्यप्रदेश
Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
Gwalior Madhyapradesh
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर
athor and editor-Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep",Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com
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यह पाठ मूल रूप से इस ब्लाग‘दीपक भारतदीप की अंतर्जाल पत्रिका’ पर लिखा गया है। अन्य ब्लाग
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