मनुष्य का यह स्वभाव है कि वह दूसरों में दोष देखता है पर दुष्ट लोगों की तो यह मनस्थिति रहती है कि अपने साथियों तक के दोष लोगों को बताकर उनको बदनाम करते हैं। हम भले ही दुष्ट लोगों के साथ संगत यह सोचकर करें कि वह क्या कर लेगा, पर यह हमारी बड़ी गलती साबित होती है। सामान्य मनुष्य पर उसकी संगति का प्रभाव अवश्य होता है। जो लोग चाहते हैं कि उनके अंदर कुविचार न आये, उनकी समाज में छवि सज्जन व्यक्ति की बने और उनके समक्ष कभी संकट न आये वह केवल इतना करें कि अपनी संगत पर ध्यान दें। ऐसे लोगों की संगत करें जिनसे मिलने पर प्रसन्नता होती हो। जो दुख देने वाले, निंदा करने वाले या असंतुलित मस्तिष्क के हैं उनसे दूर रहना ही श्रेयस्कर है। दुष्ट लोगों की संगत इतनी बुरी है कि वह शर्मदार को डरपोक, धर्मभीरु को पाखंडी, सत्यवादियों को कपटी और वीर को क्रूर बताते हैं। इन दुष्टों में बस एक ही गुण होता है दूसरों की निंदा करना। इतना ही नहीं न ऐसे लोगों से संगत करना चाहिए न ही इनकी संगत में रहने वाले के पास जाना चाहिए।
इस विषय में महाराज भर्तृहरि कहते हैं कि
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जाङ्यं ह्नीमति गणयते व्रतरुचौ दम्भः शुचौ कैतवं शूरे निर्घृणता मुनौ विमतिता दैन्यं प्रियालापिनि।
तेजस्विन्यवलिप्तता मुखरता वक्तर्यशक्तिः स्थिरे तत्को नाम गुणो भवेत् गुणिनां यो दुर्जनैनाकितः।।
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जाङ्यं ह्नीमति गणयते व्रतरुचौ दम्भः शुचौ कैतवं शूरे निर्घृणता मुनौ विमतिता दैन्यं प्रियालापिनि।
तेजस्विन्यवलिप्तता मुखरता वक्तर्यशक्तिः स्थिरे तत्को नाम गुणो भवेत् गुणिनां यो दुर्जनैनाकितः।।
‘‘दुष्ट संकोचशील पुरुषों में जड़ता, धर्मभीरुओं में पाखंड, सत्य धर्म में स्थित रहने वालों में कपट, वीरों में क्रूरता, विद्वानों में मूर्खता, नम्र लोगों में दीनता, प्रभावशालियों में अहंकार, अच्छे वक्तओं में बकवास तथा धीर गंभीर रहने वालों में असमर्थता का दुर्गुण होने का बयान करते हैं। ऐसा कौनसा गुणी आदमी है जिसमें दुष्ट लोग दोष नहीं ढूंढते।’’
ऐसे दुष्टों की बात पर ध्यान देने से अपना ही मन खराब करना है। हम अच्छे है या बुरे इसकी पहचान हमें स्वयं ही कर सकते हैं। सीधी बात यह है कि हमारे मन में किसी के प्रति बुरा विचार नहीं आना चाहिए। दूसरा व्यक्ति अच्छा है या बुरा इसकी पहचान यह है कि भला आदमी कभी किसी निंदा नहीं करता। सज्जन आदमी हमेशा दूसरों के गुणों की प्रशंसा करता है। इतना ही नहीं दुष्ट व्यक्ति की पहचान होने पर उससे संबंध बनाये रखना ठीक नहीं है। यह सोचना बेकार है कि नियमित संबंध बनाये रखने में क्या दोष? दरअसल ऐसे दुष्ट व्यक्ति सामने कुछ न कहें पर पीठ पीछे अपने साथ का दोष बयान करने से बाज नहीं आते। अपनी छवि बनाने के लिये यह दूसरे की छवि खराब करते हैं।
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर
athor and editor-Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep",Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com
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