अनेक लोग शिकायत करते हैं कि उन्होंनें किसी की मदद की तो उसने वादा नहीं निभाया। अनेक कहते हैं कि अमुक आदमी ने उनका भरोसा तोड़ा। भरोसे का संकट मनुष्य समाज में रहता ही है। एक आदमी पर कब तक भरोसा किया जा सकता है कि वह अपनी बात पर खरा उतरेगा? जब तक वह अपनी जिम्मेदारी पर लिये गये काम को करने का वादा करता रहे भले ही इस संबंध में कुछ करता न दिखे या उसके काम करने की अवधि निकल जाये या फिर तब तक जब तक हम सुनते हुए बोर न हो जायें। सबसे बेहतर यह कि यह मान लिया जाये कि भरोसा वैसे ही टूटता है जैसे वादा मुकरने के लिये किया जाता है। जिसे काम करना है वह वादा नहंी करता। जो मदद करता है वह ढिंढोरा नहीं पीटता। गरजने वाले बादल कभी बरसते नहीं-यह सिद्धांत मान लें तो कभी कष्ट ही न हो।
इस संबंध में एक कथा आती है कि एक आदमी फल तोड़ने के लिये पेड़ पर चढ़ गया। फल तो उसने तोड़ा पर अब सवाल यह आया कि नीचे उतरे कैसे? वह भगवान से प्रार्थना करने लगा कि ‘हे भगवान, किसी तरह इस पेड़ से उतर तो मैं दस रुपये का प्रसाद चढ़ाऊंगा।’
वह थोड़ा उतरा तो पांच रुपये फिर सवा रुपये और जब पूरी तरह उतर गया तो कहने लगा कि‘काहे का प्रसाद चढ़ाऊं? जब मै पेड़ पर चढ़ा ही स्वयं था तो उतरना कौनसी बड़ी बात थी?’’
पुरानी कहानियां में हमेशा कोई न कोई संदेश रहता है। यह कहानी मानवीय स्वभाव की स्थिति को बयान करती है। जब व्यक्ति संकट में होता है या उसका ऐसा काम फंसा रहता है जिसे स्वयं नहीं कर सकता तब वह मासूमियत से इधर उधर देखता है कि कोई उसकी मदद करे। इस प्रयास में वह जिससे मदद की आशा करता है उससे तमाम तरह की प्रार्थना करने के साथ ही प्रलोभन भी देता है। काम निकलने के बाद वह वादा पूरा करेगा या नहीं, करेगा तो अपने कथन के अनुसार या नहीं, इस पर विश्वास करना कठिन है। नही करता तो मदद करने वाला आदमी निराश होता है पर ज्ञानियों के लिये यह समस्या नहीं होती। वह तो नेकी कर दरिया में डाल के सिद्धांत पर चलते हैं।
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दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’’
कवि, लेखक एंव संपादक-दीपक 'भारतदीप",ग्वालियर
poet,writer and editor-Deepak 'BharatDeep',Gwalior
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grat
ReplyDeleteजिंदगी का सफर-हिन्दी कविता(zindagi ka safar-hindi poem)
ReplyDeleteस्मरण में नहीं है
वह मित्र
जिंदगी के सफर में जो साथ थे।
भूल गये उनकी ताकत
हमारे सहारे जिनके हाथ थे।
कहें दीपक जिंदगी का रथ
चलता है इतनी तेजी से
आंखों के सामने गुजर जाते
बड़े बड़े पेड़
फसलों से भरे खेत
गगनचुंबी इमारतें
न हमने पूछा
न किसी ने बताया
कौन उनके नाथ थे।