एक हिन्दू धार्मिक गुरु ने शिर्डी के सांई बाबा की भक्ति के विरुद्ध अभियान
चलाया हुआ है। इसमें एक तर्क यह दिया जा रहा है कि उनकी पूजा करने पर लक्ष्मी
नाराज हो जाती है। हमें हैरानी इस बात की
है कि स्वयं को ब्रह्मज्ञानी कहलाने वाले लोग श्रीमद्भागवत गीता के संदेशों का आशय
नहीं समझते इसी कारण उसमें वर्णित
मनोविज्ञान से वह अनभिज्ञ हैं। श्रीमद्भागवगीता में चार प्रकार के भक्तों
के-आर्ती, अर्थार्थी, जिज्ञासु और ज्ञानी का-वर्णन किया गया है। इन
चारों का अस्तित्व रहना ही है इसलिये ज्ञानी को सहअस्तित्व का भाव रखना चाहिये।
श्रीमद्भागवत गीता में यह भी बता दिया है
कि ज्ञानी भक्त जो भगवान को प्रिय हैं उनकी संख्या नगण्य ही रहेगी। इसलिये सारे
संसार को ज्ञानी बना देने का सपना देखना महान अज्ञानता का लक्षण है।
हम यहां सांईं बाबा की भक्ति के
समर्थक नहीं है पर विरोध भी नहीं करते।
जिन धार्मिक गुरु ने सांई बाबा की भक्ति का विरोध किया उन्होंने ही दलित
वर्ग के मंदिर प्रवेश को भी निषिद्ध बताया है।
ऐसा लगता है कि हमारे देश में कुछ धर्माचार्य समाज में विघटन कर अपना काम
सिद्ध करना चाहते हैं। कहा जाता है कि दो हजार वर्ष यह देश गुलाम रहा पर यह सत्य
कोई नहीं स्वीकार कर रहा कि इसके लिये हमारा सामाजिक वैमनस्य रहा है। इस तरह का
वैमनस्य फैलाना भारतीय धर्म के विरोधियों को अपने ऊपर प्रहार करने का अवसर देने
जैसा होगा।
वैसे तो समस्त मंदिरों में आमजन का प्रवेश सहजता से होता है पर जिनमें निजी प्रभाव अधिक होता है वहां आम
श्रद्धालू अपनी सुविधा से जाता है। इसके
अलावा हमारे जहां मूर्तिपूजा अधिक होती है इसलिये चारों प्रकार के भक्त मंदिरों
जाते जरूर हैं पर आर्ती और अर्थार्थी तो अपने काम की सिद्धि के लिये इधर उधर चक्कर
भी मारते हैं। उनकी पीड़ाओं का निवारण तथा
कार्यसिद्ध समय के अनुसार स्वतः होता ही है पर किसी का यकीन प्राचीन देवता से हटकर
किसी सांसरिक मनुष्य पर जम जाये तो उसे समझाना कठिन है। सांसरिक मनुष्य पर यकीन
करने वाले मनुष्य को रोकना या धमकाना जोखिम भरा भी हो सकता है यह बात धर्म को समूह
में बनाये रखने वाले कथित धार्मिक विद्वानों को समझना चाहिये।
अगर मान लीजिये किन्हीं सांईं बाबा के भक्तों के पास भले ही भाग्य से धन आया हो पर वह उनकी कृपा मानता है
तो वह ऐसे धर्माचार्यों पर गुस्सा होंगे। आज आप उनको हिन्दू कहकर दुत्कार रहे हो
कल वह धर्म परिवर्तन करने लगे तो क्या करेंगे? हालांकि इस तरह
की आशंका इसलिये नहं है क्योंकि सांईबाबा
के अधिकतर भक्त हिन्दू ही हैं और अन्य देवी देवताओं के प्रति उनमें हृदय में आस्था
कम नहीं है। यही कारण है कि सांई बाबा के
मंदिरों में अन्य देवताओं की मूर्तियां भी स्थापित की जाती हैं। वहां रामनवमी, कृष्णजन्माष्टमी, गणेश चतुर्थीं और दीपावली जैसे पर्व मनाये ही
जाते हैं।
मुख्य बात यह है कि एक योग साधक और गीता पाठक होने के नाते हम दूसरे की
भक्ति पर आक्षेप करना अनुचित मानते हैं। वैसे ही हमारे देश में आर्थिक, सामाजिक तथा शारीरिक तनाव अधिक हैं ऐसे में कोई सांई बाबा की भक्ति से
प्रसन्नता प्राप्त कर रहा है तो एक ज्ञानी की नज़र में बुरा नहीं है। अब इस तरह के अभियान को अधिक हवा देना ठीक नहीं
है। जहां तक इस तरह के अभियान से संतोषी
माता की भक्ति समाप्त करने का दावा किया जाता है पर यह उनका भ्रम है। आज भी अनेक लोग संतोषी माता का व्रत रखते हैं।
इसलिये सांईबाबा के विरुद्ध अभियान चलाने वाले इस तरह के दावे कर अपने को सिद्ध
नहीं प्रमाणित कर सकते।
दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप’’
ग्वालियर मध्यप्रदेश
ग्वालियर मध्यप्रदेश
Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
Gwalior Madhyapradesh
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर
athor and editor-Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep",Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com
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यह पाठ मूल रूप से इस ब्लाग‘दीपक भारतदीप की अंतर्जाल पत्रिका’ पर लिखा गया है। अन्य ब्लाग
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