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Saturday, October 18, 2014

अमृतसर के स्वर्ण मंदिर यात्रा से हुई अध्यात्मिक स्वर्णिम अनुभूति-हिन्द लेख(amrisar ke swarn mandir ya harmindar sahib ki yatra se mili swarnim anubhuti, A Golden expirence of A Golden temple in amritsar)



            हमने  11 अक्टुबर से 13 अक्टुबर 2014 शनिवार से मंगलवार तक अमृतसर के स्वर्ण मंदिर-जिसे हरमिंदर साहब भी कहा जाता है-पर जो समय बिताया वह वास्तव में स्वर्णिम स्मृति की तरह हमारे मन मस्तिष्क में जीवन भर रहेगा। वहां रहने के लिये गुरुद्वारा प्रबंध समिति के कार्यकर्ता ने हमें श्री बाबा दीपसिंह बाबा निवास प्रदान किया।  वह हरमिंदर साहिब से करीब एक किलोमीटर दूर होगा। उसे ढूंढने में हमें परेशान हुई। ऐसा लगा कि हमें असहयोग के मार्ग पर धकेला गया पर वहां कमरे में तीन दिन रहे तब लगा कि जिन महानुभाव ने हमें वहां भेजा उनकी हृदय में हमारे लिये सामान्य पर पवित्र भाव ही था।

            जिस तरह की सफाई, पेयजल तथा अन्य व्यवस्थायें वहां देखने को मिलीं वह रोमांचित करने वाली थी।  उस निवास के सामने ही श्रीबाबादीपसिंह गुरुद्वारा था जहां हमने हरमिंदर साहिब के बाद सबसे अधिक भीड़ देखी।  वहां लंगर और चाय की व्यवस्था भी थी।  हरमिंदर साहिब में तो लंगर की व्यवस्था इस तरह चल रही थी जैसे कि कारखाना या कोई उद्योग चलता हो।  बर्तनों के आपस में टकराने से निकले स्वर ऐसे आभास दे रहे थे कहीं कोई मशील चल रही हो।  हरमिंदर साहिब के सामने ही रामदास सराय में पर्यटकों के लिये अपनी देह स्वच्छ करने की व्यवस्था थी। वहां सेवादार इस तरह सक्रिय थे जैसे कि किसी कारखाने में कार्यरत हों। उसकी निरंतर सफाई इस तरह जारी थी जैसे कि वहां व्यवसायिक स्थान हो। 

            सभी स्थानों पर लंगरों  नियमित सेवादार तो नियुक्त थे पर ऐसे लोग भी कार्य कर रहे थे जिनके हृदय में गुरुभक्ति कूट कूट कर भरी रहती है। लंगर में अनेक आम तीर्थप्रेमी भी बर्तन आदि साफ करने का काम कर अपने हृदय के सेवा भाव का परिचय दे रहे थे।  सिख गुरुओं ने परोपकार तथा श्रम को अत्यंत महत्व दिया है।  हमारा मानना तो यह है कि आज के युग में श्रीमद्भागवत गीता तथा गुरुग्रंथ साहिब के संदेशों में जिस तरह अकुशल शारीरिक श्रम को सम्मान योग्य माना गया है उस हृदय में धारण करना ही चाहिये।
गुरु ग्रंथ साहिब में कहा गया है कि
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जो रतु पीवहि माणसा तिन किउ निरमलु चीतु।
            हिन्दी में भावार्थ-जिस व्यक्ति में दूसरे मनुष्य का रक्त पीने की आदत है उसका मन कभी निर्मल हो ही नहीं सकता।
आप गवाए सेवा करे ता किछ पाए मान
            हिन्दी में भावार्थ-अपना अहंकार त्याग कर सेवा करें तभी कुछ सम्मान मिल सकता है।
            कहा जाता है कि सिख धर्म का प्रादुर्भाव ही हिन्दू संस्कृति या धर्म की रक्षा के लिये हुआ।  यह अलग बात है कि आधुनिक  राजनीतिक द्वंद्वों के चलते  हिन्दू और सिख धर्म को प्रथक प्रथक बताने का प्रयास हो रहा है।  हरमिंदर साहिब में जाने पर यह पता चलता है कि वहां हर धर्म, वर्ण और समाज का धर्म प्रेमी अत्यंत श्रद्धभाव  हृदय में स्थापित कर आता है।  भारत ही नहीं वरन् पूरे विश्व में सिख धर्म गुरुओं के प्रति सकारात्मक रुचि है।  आज जब भौतिक विलासिता के प्रभाव में शारीरिक श्रम के अभाव हो गया है तब हम मनुष्यों में बढ़ते मानसिक रोगों का दुष्प्रभाव भी देख सकते हैं।  इतना ही नहीं धन, पद और प्रतिष्ठा का संग्रह कर चुके लोगों में जो अहंकार भाव दिखता है उसकी वजह से समाज में वैमनस्य भी बढ़ा है।  हालांकि लोगों का धर्म के प्रति झुकाव भी बढ़ा दिखता है पर सच यह है कि धार्मिक स्थानों पर पर्यटन की दृष्टि से मन बहलाने में ही उनकी रुचि अधिक दिखती है।  गुरुओं के संदेशों पर अमल करने वाले कितने हैं यह अलग से चर्चा का विषय है पर एक बात निश्चित है कि गुरु सेवा में निरंतर निष्काम भाव से लगे लोगों गुरुग्रंथ साहिब के संदेशों के प्रचार में सक्रियता प्रशंसनीय है।  इसके अलावा जो परोपकार में लगे हैं तो उन्हें ज्ञानी ही कहा जाना चाहिये।
            एक योग साधक तथा ज्ञान प्रिय होने के नाते अमृतसर की यह यात्रा हमारे लिये अत्यंत रुचिकर रही। हमने जो देखा उस पर लगातार लिखते ही रहेंगे। हम जैसे लोगों के लिये भौतिक स्वर्ण से अधिक ज्ञान का स्वर्ण महत्वपूर्ण रहता है जो  ऐसे स्थानों पर जाने पर स्वाभाविक रूप से प्राप्त होता है।


दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप’’
ग्वालियर मध्यप्रदेश
Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
Gwalior Madhyapradesh
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर 
athor and editor-Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep",Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com
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