मनुष्य का यह सहज स्वभाव होता है कि अपने अंदर गुणों
का विकास करने की बजाय दूसरे के दोष दिखाकर अपने लिये प्रशंसा जुटाना चाहता
है। इतना ही नहीं रचनात्मक कार्य में लगे
लोगों का समर्थन करने की बजाय समाज उसका मनोबल गिराना चाहता है। सामान्य लोग पूरा जीवन
स्वार्थों की पूर्ति में लगा देते हैं पर परमार्थी कहलाने का मोह होने के कारण वह
कोई परोपकार करने की बजाय दूसरे के कार्यों को समाज के लिये अपकारी बताकर अपनी छवि
बनाना चाहते हैं। कहने का अभिप्राय यह है कि अपनी बड़ी लकीर खींचने की बजाय लोग थूक
से दूसरे की खींची लकीर को छोटा करना चाहते हैं।
विदुर नीति में कहा गया है कि
---------------------------
असूय को दन्दशू को निष्ठुरो वैरकृच्छठः।
स कृच्छम् महदाप्नोति न चिरात् पापमाचरन्।।
स कृच्छम् महदाप्नोति न चिरात् पापमाचरन्।।
हिन्दी में भावार्थ-गुणों में दोष देखने वाला, दूसरे के मर्म को छेदने वाला, निर्दयी, शत्रुता का व्यवहार रखने वाला और शठ मनुष्य शीघ्र ही अपने आचरण के कारण महान कष्ट को प्राप्त होता है।
अनूसयुः कृतप्रज्ञ शोभनान्याचरन् सदा।
न कृच्छ्रम् महदाप्नोति सर्वत्र च विरोचते।।
न कृच्छ्रम् महदाप्नोति सर्वत्र च विरोचते।।
हिन्दी में भावार्थ-दोषदृष्टि से रहित शुद्ध मंतव्य वाला सदा अनुष्ठान तथा पवित्र कार्य करते हुए महान सुख के साथ सम्मान भी प्राप्त करता है।
चाहे कोई कितना भी कहे कि आजकल बुरे काम और गलत
मार्ग अपनाये बिना कुछ नहीं मिलता पर यह उसका भ्रम है। जो मार्ग कुऐं की तरफ जाता
है और कोई अज्ञानी उस पर चलता चला जायेगा तो वह उसमें गिरेगा ही-वह कोई आकाश
में उड़ने का विमान प्राप्त नहीं कर लेगा। यही स्थिति कर्म, व्यवहार और दृष्टि की है।
दूसरे में दोष देखते रहकर उसकी चर्चा करने रहने से
वह दुर्गुण हमारे अंदर भी आ जाता है। हमारे मन में जिस प्रकार का स्मरण होता है वैसे ही
दृश्य सामने आते
हैं। दूसरे
के दोषों का स्मरण करने मात्र से भी वह दोष हमारे अंदर आ जाता है। दूसरे को मर्म भेदने वाली बात कहकर उसे कष्ट
देना बहुत बुरा है। किसी के दुःख को उभारने उसके मन में जो कष्ट आता है उसका प्रभाव कहीं न कहीं हम पर भी पड़ता है।
इस तरह का नकारत्मक व्यवहार करने वाले लोग न केवल अपने जीवन में विकास से वंचित रहते हैं बल्कि
उनको महान कष्ट भी प्राप्त होता है।
कहने का अभिप्राय यह है जो मनुष्य सदा दूसरों में गुण देखते हुए सभी का
सम्मान करते हैं उनको अपने काम में न केवल सफलता मिलती है बल्कि समाज में उनको सम्मान भी प्राप्त होता है।
दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप’’
ग्वालियर मध्यप्रदेश
ग्वालियर मध्यप्रदेश
Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
Gwalior Madhyapradesh
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर
athor and editor-Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep",Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com
http://zeedipak.blogspot.com
यह पाठ मूल रूप से इस ब्लाग‘दीपक भारतदीप की अंतर्जाल पत्रिका’ पर लिखा गया है। अन्य ब्लाग
1.दीपक भारतदीप की शब्द लेख पत्रिका
2.शब्दलेख सारथि
3.दीपक भारतदीप का चिंतन
४.शब्दयोग सारथी पत्रिका
५.हिन्दी एक्सप्रेस पत्रिका
६.अमृत सन्देश पत्रिका
No comments:
Post a Comment