आजकल साहित्य, कला, पत्रकारिता, फिल्म, टी.वी.,
खेल तथा अर्थ के क्षेत्र में शिखर पर पहुंचे लोग अंशकालिक रूप से समाज के गरीब, बेसहारा, अनाथ तथा बीमार लोगों की सहायता करने का कार्य करने
का दावा करते हैं| चूंकि
इन लोगों का नाम प्रचार जगत में अपने मूल कर्म की वजह से वैसे ही चमकता इसलिये
इन्हें अपनी प्रतिष्ठा बढ़ाने का प्रयास तो वैसे भी नहीं माना जा सकता पर कहीं न
कहंी अंतर्मन में महापुरुष की अपनी छवि
बनाने की चाहत होती है जिसे वह पूरी करना चाहते हैं। अगर हम देश के समाज सेवकों की
कुल संख्या का सही आंकलन करें तब यह प्रश्न उठेगा कि फिर इस देश में इतनी सारी
गरीब और बेबसी कैसे अब भी विद्यमान है?
दूसरी तरफ यह भी सच है कि मजबूरी लोगों की सहायता करना
हमारे देश की रक्त प्रवाह करने वाली धमनियों में है इसलिये यह भी संभव नहीं है कि
सभी समाजसेवक गलत हैं। सच यह है कि जो वास्तव
में हृदय से समाजसेवा करते हैं उनके दिमाग में कभी भी अपनी छवि महापुरुष के रूप
में स्थापित नहीं करते। उनक लक्ष्य केवल
एक ही रहता है कि वह ऐसा कर अपने मानव होने पर संतोष कर सकें।
भर्तृहरि नीति शतक में कहा गया है कि
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पद्माकरं दिनकरो विकची करोति
चन्द्रो विकासयति कैरवचक्रवालम्|
नाभ्यर्थितो जलधरोऽपि जलं ददाति
संत स्वयं परहिते विहिताभियोगाः||
चन्द्रो विकासयति कैरवचक्रवालम्|
नाभ्यर्थितो जलधरोऽपि जलं ददाति
संत स्वयं परहिते विहिताभियोगाः||
हिंदी में भावार्थ- बिना याचना किये सूर्य नारायण संसार में प्रकाश का
दान करते है। चंद्रमा
कुमुदिनी को उज्जवलता प्रदान करता है। कोई प्रार्थना नहीं करता तब भी बादल स्वयं ही वर्षा
कर देते हैं। उसी प्रकार सहृदय मनुष्य स्वयं ही बिना किसी दिखावे के दूसरों की सहायता करने के लिये
तत्पर रहते हैं।
आज
के आधुनिक युग में समाज सेवा करना फैशन हो सकता है पर उससे किसी का भला होगा
यह विचार करना भी व्यर्थ है। टीवी चैनलों और समाचार पत्रों में समाज सेवा करने वालों समाचार नित्य प्रतिदिन आना एक विज्ञापन से अधिक कुछ नहीं होता। कैमरे के सामने
बाढ़ या अकाल पीडि़तों को सहायता देने के फोटो देखकर यह नहीं समझ लेना चाहिये
कि वह मदद है बल्कि वह एक प्रचार है। बिना स्वार्थ के सहायता करने वाले लोग कभी इस तरह के दिखावे में नहीं आते।
जो दिखाकर मदद कर रहे हैं उनसे पीछे प्रचार पाना ही उनका उद्देश्य है। इस तरह की समाज सेवा की
गतिविधियों में वही लोग सक्रिय देखे जाते हैं जिनकी समाजसेवक की छवि छद्म रूप होती
है जबकि दरअसल उनका लक्ष्य दूसरा ही होता है| उनके प्रयासों से समाज का उद्धार कभी नहीं होता। समाज के सच्चे
हितैषी तो
वही होते हैं जो बिना प्रचार के किसी की याचना न होने पर भी सहायता के लिये पहुंच जाते हैं।
जिनके हृदय में किसी की सहायता का भाव उस मनुष्य को बिना किसी को दिखाये सहायता के लिये तत्पर
होना चाहिये-यह सोचकर कि वह एक मनुष्य है और यह उसका धर्म है। अगर आप सहायता का
प्रचार करते हैं तो दान से मिलने वाले पुण्य का नाश करते हैं। इसलिए समाज सेवा हमेशा ही निष्काम भाव से करना
चाहिए|
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दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप’’
ग्वालियर मध्यप्रदेश
ग्वालियर मध्यप्रदेश
Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
Gwalior Madhyapradesh
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर
athor and editor-Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep",Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com
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यह पाठ मूल रूप से इस ब्लाग‘दीपक भारतदीप की अंतर्जाल पत्रिका’ पर लिखा गया है। अन्य ब्लाग
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