वर्तमान भौतिक युग में जिनके पास अधिक धन, उच्च पद और प्रतिष्ठा है उनका आभा मंडल समाज में इतना व्यापक होता है कि
हर सामान्य आदमी उनके पास पहुंचकर अपना कल्याण पाना चाहता है। यह अलग बात है कि ऐसे कथित महापुरुष सामान्य
लोगों से कहीं अधिक डरपोक, लालची तथा अहंकारी होते हैं। अपनी उपलब्धि का मद उन्हें हमेशा ही धेरे रहता
है। यह समाज का शोषण कर सारी सफलता प्राप्त करते हैं पर सामान्य आदमी फिर उनसे
दयालुता दिखाने की आशा करता है। देखा यही
जा रहा है कि वही शिखर पुरुष समाज में प्रतिष्ठ प्राप्त करता है जो अपने इर्दगिर्द
चाटुकारों की सेना एकत्रित करता है।
भर्तृहरि नीति शतक में कहा गया है कि----------------------------------दुरारध्याश्चामी तुरचलचित्ताः क्षितिभुजो वयं
तु स्थूलेच्छाः सुमहति बद्धमनसः।जरा देहं मृत्युरति दयितं जीवितमिदं
सखे नानयच्छ्रेयो जगति विदुषेऽन्यत्र तपसः।।हिंदी में भावार्थ- जिन राजाओं का मन घोड़े की तरह दौड़ता है उनको कोई कब तक प्रसन्न रख सकता है? हमारी अभिलाषाओं और आकांक्षाओं की तो कोई सीमा ही नहीं है। सभी के मन में अधिक धन, बड़ा पद तथा प्रतिष्ठत छवि पाने की लालसा स्वाभाविक रूप से होती है। इधर शरीर बुढ़ापे की तरह बढ़ रहा होता है। मृत्यु पीछे पड़ी हुई होती है। इन सभी को देखते हुए तो यही कहा जा सकता है कि भक्ति और तप के अलावा को अन्य मार्ग ऐसा नहीं है जो हमारा कल्याण कर सके।
लोगों के मन में धन पाने की लालसा बहुत होती है और इसलिये वह धनिकों, उच्च पदस्थ एवं बाहुबली लोगों की और आशा भरी दृष्टि स ताकते हुए उनकी चमचागिरी करने के लिये तैयार रहते हैं। उनकी चाटुकारिता में
कोई कमी नहीं करते। चाटुकार लोगों को
यह आशा रहती है कि कथित ऊंचा आदमी उन पर रहम कर उनका कल्याण करेगा। यह केवल भ्रम है। जिनके
पास वैभव है उनका मन भी हमारी तरह चंचल होता है और वह अपना काम निकालकर भूल जाते हैं या अगर कुछ देते हैं
तो केवल चाटुकारिता के
कारण नहीं
बल्कि कोई सेवा करा कर। वह भी जो प्रतिफल देते हैं तो वह भी न के बराबर। इस संसार में
बहुत कम ऐसे लोग हैं जो धन, पद
और प्रतिष्ठा प्राप्त कर उसके मद में डूबने से बच पाते हैं। अधिकतर लोग तो अपनी शक्ति के अहंकार में अपने से छोटे आदमी
को कीड़े मकौड़े जैसा समझने लगते हैं और उनकी चमचागिरी करने पर भी कोई लाभ नहीं होता।
अगर ऐसे लोगों की निंरतर सेवा की जाये तो भी सामान्य से
कम प्रतिफल मिलता है।
सच तो यह है कि आदमी का जीवन इसी तरह गुलामी करते
हुए व्यर्थ चला जाता हैं। जो धनी है वह अहंकार में है और जो गरीब है वह केवल
बड़े लोगों की ओर ताकता हुआ जीवन गुंजारता है। जिन लोगों का इस बात का ज्ञान
है वह भक्ति और तप के पथ पर चलते हैं क्योंकि वही कल्याण का मार्ग है।इस
संसार में प्रसन्नता से जीने का एक ही उपाय है कि अपने स्वाभिमान की रक्षा
करते हुए ही जीवन भर चलते रहें। अपने
से बड़े आदमी की चाटुकारिता से लाभ की आशा करना अपने लिये निराशा पैदा करना है।
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दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप’’
ग्वालियर मध्यप्रदेश
ग्वालियर मध्यप्रदेश
Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
Gwalior Madhyapradesh
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर
athor and editor-Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep",Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com
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