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Sunday, January 12, 2014

आजकल समाज सेवा पेशे के रूप में की जाती है-हिन्दी अध्यात्मिक चिंत्तन (aajkal samaj seva peshe ke roop mein ki jaati hai-hindi ahdyatmik chinttan)



      हमारे देश में समाज सेवा एक पेशा हो गयी है।  अनेक कथित स्वयंसेवी संगठन इस देश में बन गये हैं जिनके कर्ताधर्ता प्रचार तो यह करते हैं कि सेवा भाव से इस क्षेत्र में आये हैं पर दरअसल वह दूसरों से चंदा लेकर अपना काम चलाते है। इतना ही नहीं वह चंदा तो लेते हैं समाज सेवा के नाम पर अपनी यात्राओं तथा रहने के लिये भी उसमें से पैसा लेते हैं।  अनेक संगठन अपनी ईमानदारी दिखाने के लिये खाते सार्वजनिक करते हैं और उसमें इसका उल्लेख भी रहता है कि उन्होंने सेवा करते हुए अपने निजी जीवन पर  भी खर्च किया। यह कर्ताधर्ता सेवा के लिये कहीं जाने पर अपने किये गये खर्च को भी सेवा कार्य का  हिस्सा मानते हैं।  इससे यह तो स्पष्ट होता है कि वह सेवा के नाम पर घूमने फिरने की नीयत रखते हैं। इतना ही नहीं अनेक बार प्रचार माध्यम अनेक सामाजिक संगठनों का प्रचार भी इस तरह करते हैं कि वह वास्तव में निस्वार्थ से ओतप्रोत लोगों का समूह है।
संत कबीर दास जी कहते हैं कि
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निज स्वारथ के कारनै, सेव करै संसार।
बिन स्वारथ भक्ति करै, सो भावे करतार।।
                        सामान्य हिन्दी में भावार्थ-संसार में स्वार्थ की वजह से सेवा की जाती है। बिना स्वार्थ तो भक्ति होती है जो परमात्मा की हो सकती है।
      आजकल इन कथित स्वयंसेवी संगठनों की बाढ़ आयी है और मजे की बात यह है कि इसके कर्ताधर्ता प्रचार कर स्वयं को महान साबित करने का प्रयास करते हैं, इसके विपरीत जो परंपरागत स्वयंसेवी संगठन या लोग हैं वह कभी भी इस तरह के प्रचार का काम नहीं करते।  वह अपने ही धन से लोगों को दान तथा सहायता देते हैं।  देखा जाये तो हमारा देश चल ही उन लोगों की वजह से जो निष्प्रयोजन दया करते हैं।  सेवा का मूल तत्व भी यही है। जब दूसरे से पैसा लेकर कोई काम करता है तो इसका सीधा आशय यही है कि वह व्यक्तिगत स्वार्थ से समाज सेवा करने वाला व्यक्ति है।  निष्काम समाज सेवी कभी अपने प्रयासों का प्रचार न करते हैं न उसका लाभ किसी पर प्रभाव डालते हैं।  इसके विपरीत पेशेवर समाज सेवी एक तरह से अपनी छवि का राजनीतिकरण भी करते हैं। चह चाहते हैं कि राजनीति क्षेत्र में वह एक समाज सेवी की तरह प्रशंसित हों।  ऐसे लोगों  का पहला लक्ष्य अपनी छवि चमकाना तथा धन संचय करना होता है।  इसलिये जिन लोगों को समाज सेवा करना चाहते हों उन्हें पहले अपने अध्यात्मिक दर्शन का अध्ययन अवश्य करना चाहिए।


दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप’’
ग्वालियर मध्यप्रदेश
Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
Gwalior Madhyapradesh
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर 

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