अगर हम आज देश के हालात
देखें तो भारी निराशा हाथ लगती है। सभी
लोग देश में व्याप्त भ्रष्टाचार, बेरोजगारी,
महंगाई तथा अपराध कम के लिये कमर कसने की बात तो करते हैं पर फिर भी
कोई बड़ा अभियान इसके लिये छेड़ा नहीं जा पाता।
विगत समय में एक भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन हुआ था पर उसकी परिणति अत्यंत
निराशाजनक ढंग से हुई। इसका कारण यह है कि
हमारा देश अब सामाजिक रूप से शक्तिशाली नहीं रहा।
समस्त प्राचीन सामाजिक संस्थायें ध्वस्त हो गयी हैं। जो बची हैं वह निष्काम रहने की बजाय अपने साथ
आर्थिक, राजनीतिक तथा प्रचार करने
की कामना के साथ कार्यरत हैं। ईमानदारी की
बात यह है कि समाज, अर्थ,
कला साहित्य, पत्रकारिता, राजनीति, फिल्म और धर्म
के क्षेत्रों में शिखर पर बैठे लोगों ने कांच के महल बना लिये हैं और इसलिये कोई
किसी पर पत्थर फैंकने का सामर्थ्य नहीं रखते।
हमारे देश में अनेक विद्वान क्रांति की बातें
करते हैं। समाज में बदलाव का नारा लगाते हुए थकते नहीं है। विचारधाराओं में बंटे
यह विद्वान समाज को बदल तो नहीं पाये पर उसे तोड़ डालने में सफल हो गये हैं। आज
स्थिति यह है कि नैतिकता, पवित्रता,
विचारशीलता तथा कार्यक्षमता के आधार पर हमार
समाज का आधार अत्यंत कमजोर हो गय गया है।
जब किसी शिखर पुरुष के निजी आचरण की बात होती है तो हमारे देश के बौद्धिक वर्ग के लेाग उसके सार्वजनिक जीवन की
प्रशंसा तो करना चाहते हैं पर निजी आचरण पर चर्चा करने से बचते है क्योंकि देखा यह
जा रहा है कि बहुत कम ऐसे बड़े लोग हैं जिनका निजी चरित्र बेदाग हैं। इतना ही नहीं
हमारे देश के कुछ सामाजिक विद्वान तो यह मानते हैं कि लड़की का चरित्र मिट्टी के
बर्तन की तरह है एक बार टूटा तो फिर उसके जीवन का आधार कमजोर हेाता है जबकि लड़के
का चरित्र पीतल के बर्तन की तरह जो गंदा होने या टूटने पर फिर से संवर सकता
है। हमारा अध्यात्मिक दर्शन इसे स्वीकार
नहंी करता।
विदुर नीति में कहा गया है कि----------------शीलं प्रधानं पुरुषे तद् यस्येह प्रणश्यति।न तस्य जीवितेनार्थो न धनेन न बन्धुभिः।।हिन्दी में भावार्थ-किसी पुरुष में उसका शील ही प्रधान होता है। वह नष्ट हो तो फिर पुरुष का जीवन, धन और बंधुओं से कोई प्रयोजन सिद्ध नहीं होता।आत्मानमेव प्रथमं द्वेष्यरूपेण बीजायेत्।ततोऽमात्यानमित्रांश्च न मोघं विजिगीषते।हिन्दी में भावार्थ-जो मनुष्य इंद्रियों के साथ ही मन को भी शत्रु मानकर जीत लेता है वही बाहरी शत्रुओं को जीतने में सफलता प्राप्त कर सकता है।
हमारे दर्शन के अनुसार जिस पुरुष का चरित्र शुद्ध है वही पवित्र विचार
रखने के साथ ही अनैतिकता से लड़ने का सामर्थ्य रखता है। जिसका चरित्र कमजोर है उसे स्वयं का पता होता
है इसलिये वह कभी किसी अस्वच्छ चरित्र, अपवित्र विचारवान तथा अधर्म के लिये तत्पर दुष्टों से लड़ने का साहस नहीं
दिखाते। इतना ही नहीं अब तो यह भी देखा
गया है कि दुष्ट प्रवृत्ति के लोगों को समाज के कथित शिखर पुरुष अपनी स्वच्छ छवि
के पीछे छिपाते हैं। अनेक लोगों को तो इसके विपरीत कहना है कि समाज के शिखरों पर
कथित रूप से स्वच्छ छवि वाले चेहरे लाने वाले वही लोेग हैं जिनको अपने चरित्र पर
लगे दागों की वजह से प्रतिष्ठा वाले शिखर पदों पर बैठना संभव नहीं लगता। स्थिति यह है कि अर्थ, धर्म, कला,
साहित्य, फिल्म तथा धर्म के क्षेत्र के शिखरों पर बैठे लोग
दुष्टों को संरक्षण देने या उनसे पाने के लिये लालायति रहते हैं। यही कारण है कि हमारे देश में अब विश्वास का
संकट पैदा हो गया है। किस पर यकीन करें या नहीं लोग अब इस बात को लेकर द्वंद्व में रहने लगे हैं। प्रचार माध्यमों में हमारे अनेक प्रकार के
शत्रु बताये जाते हैं पर सच यह है कि हमारा सबसे बड़ा शत्रु हमारे चरित्र का ही
संकट है। हम देश की विश्व में प्रतिष्ठा
भी देखना चाहते हैं और विदेशीमुद्रा पर आश्रित हैं। हमारा देश भारी कर्ज के साथ
सांस ले रहा है।
हमारे देश में अध्यात्म के
नाम पर मनोरंजन बिकता है इसलिये उसके वास्तविक संदेशों का ज्ञान किसी को नहीं है।
सच बात तो यह है कि हमें अपने अध्यात्मिक दर्शन के साथ जुड़े रहें और इस बात पर
विचार न करें कि हमारा समाज किधर जा रहा है बल्कि हम यह तय करें कि हमें कहां जाना
है?
दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप’’
ग्वालियर मध्यप्रदेश
ग्वालियर मध्यप्रदेश
Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
Gwalior Madhyapradesh
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर
athor and editor-Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep",Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com
http://zeedipak.blogspot.com
यह पाठ मूल रूप से इस ब्लाग‘दीपक भारतदीप की अंतर्जाल पत्रिका’ पर लिखा गया है। अन्य ब्लाग
1.दीपक भारतदीप की शब्द लेख पत्रिका
2.शब्दलेख सारथि
3.दीपक भारतदीप का चिंतन
४.शब्दयोग सारथी पत्रिका
५.हिन्दी एक्सप्रेस पत्रिका
६.अमृत सन्देश पत्रिका
No comments:
Post a Comment