यदावगच्छेदायत्वयामाधिक्यं ध्रृवमात्मनः।
तदा त्वेचाल्पिकां पीर्डा तदा सन्धि समाश्चयेत्।।
"भविष्य में अच्छी संभावना हो तो वर्तमान में विरोधियों और शत्रुओं से भी संधि कर लेना चाहिए। "
क्षीणस्य चैव क्रमशो दैवात् पूर्वकृतेन वा।
मित्रस्य चानुरोधेन द्विविधं स्मृतमासनम्।।
"जब शक्ति क्षीण हो जाने पर या अपनी गलतियों के कारण चुप बैठना तथा मित्रों की बात का सम्मान करते हुए उनसे विवाद न करना यह दो प्रकार के शांत आसन हैं।"
यदावगच्छेदायत्वयामाधिक्यं ध्रृवमात्मनः।
तदा त्वेचाल्पिकां पीर्डा तदा सन्धि समाश्चयेत्।।
"भविष्य में अच्छी संभावना हो तो वर्तमान में विरोधियों और शत्रुओं से भी संधि कर लेना चाहिए।"
तदा त्वेचाल्पिकां पीर्डा तदा सन्धि समाश्चयेत्।।
"भविष्य में अच्छी संभावना हो तो वर्तमान में विरोधियों और शत्रुओं से भी संधि कर लेना चाहिए। "
क्षीणस्य चैव क्रमशो दैवात् पूर्वकृतेन वा।
मित्रस्य चानुरोधेन द्विविधं स्मृतमासनम्।।
"जब शक्ति क्षीण हो जाने पर या अपनी गलतियों के कारण चुप बैठना तथा मित्रों की बात का सम्मान करते हुए उनसे विवाद न करना यह दो प्रकार के शांत आसन हैं।"
यदावगच्छेदायत्वयामाधिक्यं ध्रृवमात्मनः।
तदा त्वेचाल्पिकां पीर्डा तदा सन्धि समाश्चयेत्।।
"भविष्य में अच्छी संभावना हो तो वर्तमान में विरोधियों और शत्रुओं से भी संधि कर लेना चाहिए।"
वर्तमान संदर्भ में संपादकीय व्याख्या-किसी भी मनुष्य के जीवन में दुःख, सुख, आशा और निराशा के दौर आते हैं। आवेश और आल्हाद के चरम भाव पर पहुंचने के बाद किसी भी मनुष्य का अपने पर से नियंत्रण समाप्त हो जाता है। भावावेश में आदमी कुछ नहीं सोच पाता। मनु महाराज के अनुसार मनुष्य को अपने विवेक पर सदैव नियंत्रण करना चाहिये। जब शक्ति क्षीण हो या अपने से कोई गलती हो जाये तब मन शांत होने लगता है और ऐसा करना श्रेयस्कर भी है। अनेक बार मित्रों से वाद विवाद हो जाने पर उनके गलत होने पर भी शांत बैठना एक तरह से आसन है। यह आसन विवेकपूर्ण मनुष्य स्वयं ही अपनाता है जबकि अज्ञानी आदमी मज़बूरीवश ऐसा करता है। जिनके पास ज्ञान है वह घटना से पहले ही अपने मन में शांति धारण करते हैं जिससे उनको सुख मिलता है जबकि अविवेकी मनुष्य बाध्यता वश ऐसा करते हुए दुःख पाते हैं।
जीवन में ऐसे अनेक तनावपूर्ण क्षण आते हैं जब आक्रामक होने का मन करता है पर उस समय अपनी स्थिति पर विचार करना चाहिए। अगर ऐसा लगता है कि भविष्य में अच्छी आशा है तब बेहतर है कि शत्रु और विरोधी से संधि कर लें क्योंकि समय के साथ यहां सब बदलता है इसलिये अपने भाव में सकारात्मक भाव रखते स्थितियों में बदलाव की आशा रखना चाहिए। कहने का अभिप्राय यह है कि हमेशा ही शांत होकर अपना काम करना चाहिए। शांत रहना भी एक तरह से आसन है। यही कारण है कि महान लोग सहजता के जीवन व्यतीत करने का सन्देश देते हैं।
-----------संकलक, लेखक और संपादक-दीपक राज कुकरेजा ''भारतदीप', ग्वालियर
writer and editor-Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep",Gwalior
http:dpkraj.blogspot.com
यह पाठ मूल रूप से इस ब्लाग‘दीपक भारतदीप की अंतर्जाल पत्रिका’ पर लिखा गया है। अन्य ब्लाग
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