अवाच्यो तु या स्त्री स्वादसम्बद्धा य योनितः।
भोभवत्पूर्वकं त्वनेमभिभाषेत धर्मवित्।।
"धर्म का ज्ञान रखने वाले को चाहिए कि वह दूसरे ज्ञानी को कभी भी नाम से संबोधित न करे भले ही वह उससे छोटी आयु का क्यों न हो। उसको हमेशा सम्मान से संबोधित करना चाहिए।" भोभवत्पूर्वकं त्वनेमभिभाषेत धर्मवित्।।
यो न वेत्यभिवादस्य विप्रः प्रत्यभिवादनम्।
नाभिवाद्य स विदुषा यथा शूर्दस्तथैव सः।।
"जो अभिवादन का उत्तर देना नहीं जानता उसे प्रणाम नहीं करना क्योंकि वह इस सम्मान के अयोग्य होता है"नाभिवाद्य स विदुषा यथा शूर्दस्तथैव सः।।
इसलिये जो लोग अभिवादन का उत्तर न देते हों या अहंकारवश मजाक उड़ाते हों उनका कभी स्वयं अभिवादन नहीं करना चाहिए। जहां तक हो सके उनके सामने आने से बचना चाहिए। इस संसार में आसुरी संपदा लेकर उत्पन्न हुए कुछ लोग ऐसे हैं जिनका अभिवादन करने पर सिवाय अपमान के कुछ नहीं मिलता। उनका अभिवादन करना तो दूर उनके चेहरे की तरफ दृष्टि नहीं डालना चाहिए।
उसी तरह दैवीय संपदा लेकर उत्पन्न सहृदयजनों का सम्मान करना भी आवश्यक है भले ही आयु में वह छोटे क्यों न हों? सच बात तो यह है कि योग्यता, प्रतिभा तथा सज्जनता के गुणों होने के लिये आयु का छोटा या बड़ा होना जिम्मेदार नहीं है। अनेक लोग बड़ी आयु होने पर भी अपना विवेक नहीं खोते। अतः अपने से कम आयु के व्यक्ति की योग्यता देखकर उसका सम्मान करना चाहिए। सामने आने पर उसे पहले अभिवादन करना भी अच्छी बात है। उस समय पहले अभिवादन करने में संकुचित मानसिकता नहीं दिखाना चाहिए। इसके अलावा जो लोग अभिवादन का उचित ढंग से उत्तर नहीं देते उनकी तरफ देखना भी नहीं चाहिए
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संकलक, लेखक और संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर
writer and editor-Deepak Raj Kukreja, 'BharatDeep',Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com
यह पाठ मूल रूप से इस ब्लाग‘दीपक भारतदीप की अंतर्जाल पत्रिका’ पर लिखा गया है। अन्य ब्लाग
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