पतंजलि योग सूत्र एक प्रमाणिक कला और विज्ञान है। आज जब हम अपने देश में अस्वस्थ और मनोरोगों के शिकार लोगों की संख्या को देखते हैं तो इसको अपनाने की आवश्यकता अधिक अनुभव होती है। पतंजलि योग एक बृहद साहित्य है और इसमें केवल आसनों से शरीर को स्वस्थ ही नहीं रखा जा सकता बल्कि प्राणायाम तथा वैचारिक योग से मन को भी प्रसन्न रखा जा सकता है। यह अंतिम सत्य है कि दवाईयां मनुष्य की बीमारियां दूर सकती हैं पर योग तो कभी बीमार ही नहीं पड़ने देता।
पतंजलि योग शास्त्र में कहा गया है कि
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प्रच्छर्दनविधारणाभ्यां वा प्राणस्य।
"प्राणवायु को बाहर निकालने और अंदर रोकने के निरंतर अभ्यास चित्त निर्मल होता है।"
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प्रच्छर्दनविधारणाभ्यां वा प्राणस्य।
"प्राणवायु को बाहर निकालने और अंदर रोकने के निरंतर अभ्यास चित्त निर्मल होता है।"
विषयवती वा प्रवृत्तिरुपन्न मनसः स्थितिनिबन्धनी।।
"विषयवाली प्रवृत्ति उत्पन्न होने पर भी मन पर नियंत्रण रहता है।"
"विषयवाली प्रवृत्ति उत्पन्न होने पर भी मन पर नियंत्रण रहता है।"
विशोका वा ज्योतिवस्ती।
"इसके अलावा शोकरहित प्रवृत्ति से मन नियंत्रण में रहता है।"
"इसके अलावा शोकरहित प्रवृत्ति से मन नियंत्रण में रहता है।"
वीतरागविषयं वा चित्तम्।
"वीतराग विषय आने पर भी मन नियंत्रण में रहता है"
"वीतराग विषय आने पर भी मन नियंत्रण में रहता है"
वर्तमान संदर्भ में संपादकीय व्याख्या-भारतीय योग दर्शन में प्राणायाम का बहुत महत्व है। योगासनों से जहां देह के विकार निकलते हैं वहीं प्राणायाम से मन तथा विचारों में शुद्धता आती है। जैसा कि स्वास्थ्य विशेषज्ञ बताते आ रहे हैं कि इस विश्व में मनोरोगियों का इतना अधिक प्रतिशत है कि उसका सही आंकलन करना संभव नहीं है। अनेक लोगों को तो यह भी पता नहीं कि वह मनोविकारों का शिकार है। इसका कारण यह है कि आधुनिक विकास में भौतिक सुविधाओं की अधिकता उपलब्धि और उपयेाग के कारण सामान्य मनुष्य का शरीर विकारों का शिकार हो रहा है वहीं मनोरंजन के नाम पर उसके सामने जो दृश्य प्रस्तुत किये जा रहे है वह मनोविकार पैदा करने वाले हैं।
ऐसी अनेक घटनायें आती हैं जिसमें किसी फिल्म या टीवी चैनल को देखकर उनके पात्रों जैसा अभिनय कुछ लोग अपनी जिंदगी में करना चाहते हैं। कई लोग तो अपनी जान गंवा देते हैं। यह तो वह उदाहरण सामने आते हैं पर इसके अलावा जिनकी मनस्थिति खराब होती है और उसका दुष्प्रभाव मनुष्य के सामान्य व्यवहार पर पड़ता है उसकी अनुभूति सहजता से नहीं हो जाता।
प्राणायाम से मन और विचारों में जो दृढ़ता आती है उसकी कल्पना ही की जा सकती है मगर जो लोग प्राणायाम करते और कराते हैं वह जानते हैं कि आज के समय में प्राणायाम ऐसा ब्रह्मास्त्र है जिससे समाजको बहुत लाभ हो सकता है।
----------संकलक एवं संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
http://anantraj.blogspot.com
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