मनुष्य के मन को विषय सदैव अपने आकर्षण में बांध रहते हैं और व्यसन ललचाकर उसकी देह को शीघ्र नष्ट होने की तरफ ले जाते हैं। जो व्यसन नहीं करते वह भी और जो करते हैं वह जानते हैं कि उनकी बुरी आदत उनकी शत्रु है, पर फिर भी उसे छोड़ नहीं पाते।
हमारे देश में ऐसा कोई आदमी नहीं है जिसे इसका ज्ञान न हो कि यह संसार के विषय हमेशा ही तकलीफदेह होते हैं पर ऐसे बहुत ज्ञानी हैं जो इसको धारण किये हुए रहते हैं। ऐसे ज्ञानी अपना काम करते हुए निष्काम भाव से भक्ति भी करते हैं ताकि समय के अनुसार उनका हृदय शांति से रह सके। जबकि अधिकतर लोग विषयों और व्यसनों में लिप्त रहते हुए जीवन आनंद से गुजारने की नीति अपनाते है। यह अलग बात है कि मानसिक तनाव उनका पीछा नहीं छूटता। विषयों के पीछे ऐसे भागते हैं कि जैसे कि सारा संसार भगवान का नहीं वरन् उनका स्वयं का सृजन हो पर जब नाकामी मिलती है तो कहते हैं कि भगवान की मर्जी।
इस विषय में कौटिल्य महाराज ने अपने अर्थशास्त्र में कहा है कि
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स्निग्धदीपशिखालोकविलेभितक्लिोचनः।
मृत्युमृच्छत्य सन्देहात् पतंगः सहसा पतन्।।
"दीपक की स्निग्ध शिखा के दर्शन से जिस पतंगे के नेत्र ललचा जाते हैं और वह उसमें जलकर जान देता है। यह रूप का विषय है इसमें संदेह नहीं है।"
गन्धलुब्धो मधुकरो दानासवपिपासया।
अभ्येत्य सुखसंजवारां गजकर्णझनज्झनाम्
"गंध की वजह से लोभी हो चुका दान मद रूपी आसव पीने की इच्छा करने वाला भंवरा सुख का अनुभव कराने वाली झनझन ध्वनि हाथी के कान के समीप जाकर मरने के लिये ही करता है।"
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स्निग्धदीपशिखालोकविलेभितक्लिोचनः।
मृत्युमृच्छत्य सन्देहात् पतंगः सहसा पतन्।।
"दीपक की स्निग्ध शिखा के दर्शन से जिस पतंगे के नेत्र ललचा जाते हैं और वह उसमें जलकर जान देता है। यह रूप का विषय है इसमें संदेह नहीं है।"
गन्धलुब्धो मधुकरो दानासवपिपासया।
अभ्येत्य सुखसंजवारां गजकर्णझनज्झनाम्
"गंध की वजह से लोभी हो चुका दान मद रूपी आसव पीने की इच्छा करने वाला भंवरा सुख का अनुभव कराने वाली झनझन ध्वनि हाथी के कान के समीप जाकर मरने के लिये ही करता है।"
कहने का अभिप्राय है कि विषय और व्यसनों को मोह आदमी छोड़ नहीं पाता। उसका मन एक से दूसरे और दूसरे से तीसरे विषय की तरफ भागता है। उस पर किसी को शराब, जुआ, तंबाकु और पान का शौक लग जाये तो फिर वह अपनी देह भी नष्ट करने लगता है। जिन लोगों के पास भारतीय अध्यात्म का रटा रटाया ज्ञान है वह भी सात्विक राह पर नहीं चलते। जिनके अपनी देह स्वस्थ रखनी है उनको व्यसनों से दूर रहने के साथ ही मन को स्वस्थ रखने के लिये विषयों में निर्लिप्त भाव अपनाना चाहिये।
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर
athor and editor-Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep",Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com
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