मन्यन्ते स्न्तमात्मानमसन्तमपि विश्रुतम्।
हिंदी में भावार्थ-किसी विशेष कार्य के लिये जब कोई सज्जन पुरुष किसी दुष्ट से मदद की याचना करता है तो अपने को प्रसिद्ध दुष्ट जानते हुए वह अपने को सज्जन समझने लगते हैं।
विद्यामदो धनमदस्तृतीयोऽभिजनो मदः।
मदा एतेऽवलिपतनामेत एवं सतां दमः।।
हिंदी में भावार्थ-विद्या, धन, और ऊंचे कुल का मद अहंकार पुरुष के लिए तो व्यसन के समान है पर सज्जन पुरुषों के लिये वह शक्ति होता है।
वर्तमान संदर्भ में संपादकीय व्याख्या-विश्व में असत्य (माया) के विस्तार के साथ धनाढ्य लोगों की संख्या के साथ आधुनिक शिक्षा से संपन्न बुद्धिमानों की संख्या भी बेतहाशा बढ़ रही है पर उसी अनुपात में अन्याय और हिंसा की वारदातों की संख्या भी बढ़ी है। वजह साफ है कि विद्या और धन वह शक्ति है जो किसी को भी भ्रमित कर सकती है। धन की प्रचुरता जिनके पास है वह उसकी शक्ति दिखाने के लिये ऐसे अनैतिक काम करते हैं जो एक सामान्य आदमी नहीं करता। उसी तरह जिन्होंने तकनीकी ज्ञान-जिसे विद्या भी कहा जाता है-प्राप्त कर लिया है उनमें बहुत कम ऐसे हैं जो उसका रचनात्मक उपयोग करते हैं। अधिकतर तो ऐसे हैं जो उसके सहारे दूसरे को हानि पहुंचाकर अपनी शक्ति दिखाना चाहते हैं। इंटरनेट पर बढ़ते अपराध और ठगी इसी का प्रमाण है कि शिक्षा या विद्या का अहंकार आदमी की बुद्धि भ्रष्ट कर देता है।
यही स्थिति दुष्ट लोगों की है। सज्जन लोगों का समूह नहीं बन पाता पर दुष्ट लोग जल्दी ही समूह बनाकर समाज में वर्चस्व स्थापित कर लेते हैं। वह ऐसी जगहों पर अपना दबदबा बना लेते हैं जहां सज्जन लोगों को अपने काम से जाना ही पड़ता है। ऐसे में दुष्ट लोगों से अपने काम के लिये वह सहायता की याचना करते हैं पर अपनी प्रसिद्धि के अहंकार में दुष्ट लोग उनको कीड़ा मकौड़ा मान लेते हैं। आप अगर प्रचार माध्यमों को देखें तो वह भी सज्जनों की सक्रियता पर कम दुष्ट लोगों की दुष्टता का प्रचार इस तरह करते हैं जैसे कि वह नायक हों। यही कारण है कि विश्व में अपराध और हिंसा का पैमाना दिन प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है। अधिकार भ्रष्ट और नाकारा लोग श्रेष्ट स्थानों पर पहुँच गए हैं और किसी सामान्य व्यक्ति की याचना पर यह सोच कर फूल जाते हैं कि देखों वह कितने योग्य हैं कि सज्जन लोग भी उनके हाथ फैला रहे हैं।
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बिलकुल सही धन्यवाद्
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