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Monday, July 27, 2009

संत कबीर वाणी-ज्ञानी और कवि बहुत, पर भक्त कम हैं (kabir ke dohe in hindi)

ज्ञानी ज्ञाता बहु मिले, पण्डित कवी अनेक।
राम रता इंन्द्री जिता, कोटी मध्ये एक।।
संत कबीरदास जी कहते हैं कि ज्ञान, ज्ञाता, विद्वान और कवि तो बहुत सारे मिले पर भगवान श्रीराम के भजन में रत तथा इंद्रियां जीतने वाला तो कोई करोड़ो में कोई एक होता है।
पढ़ते-पढ़ते जनम गया, आसा लागी हेत।
बोया बीजहि कुमति ने, गया जू निर्मल खेत।।

संत कबीरदास जी कहते हैं कि पढ़ते और गुनते पूरा जन्म गुजर गया पर मन की कामनायें और इच्छायें पीछा करती रही। कुमति का बीज जो दिमाग के खेत में बोया उससे मनुष्य के मन का निर्मल खेत नष्ट हो गया।
वर्तमान संदर्भ में संपाकदीय व्याख्या-आधुनिक शिक्षा ने सांसरिक विषयों में जितना ज्ञान मनुष्य को लगा दिया उतना ही वह अध्यात्मिक ज्ञान से परे हो गया है। वैसे यह तो पुराने समय से चल रहा है पर आज जिस तरह देश में हिंसा और भ्रष्टाचार का बोलबाला है उससे देखकर कोई भी नहीं कह सकता है कि यह देश वही है जैसे विश्व में अध्यात्मिक गुरु कहा जाता है। आतंकवाद केवल विदेश से ही नहीं आ रहा बल्कि उसके लिये खादी पानी देने वाले इसी देश में है। इसी देश के अनेक लोग विदेश की कल्पित विचाराधारा के आधार पर देश में सुखमय समाज बनाने के लिये हिंसक संघर्ष में रत हैं। यह लोग पढ़े लिखे हैं पर अपने देश में वर्ग संघर्ष में समाज का कल्याण देखते हैं। अपने ही अध्यात्मिक शिक्षा को वह निंदनीय और अव्यवहारिक मानते हैं।
जहां हिंसा होगी वहां प्रतिहिंसा भी होगी। जहां आतंक होगा वहां राज्य को भी आक्रमक होकर कार्यवाही करनी पड़ती है। हिंसा से न तो राज्य चलते हैं न समाज सुधरते हैं। इतना ही नहीं इन हिंसक तत्वों ने साहित्य भी ऐसा ही रचा है और उनके लेखक-कवि भी ऐसे हैं जो हिंसा को प्रोत्साहन देते हैं।
सच बात तो यह है कि समाज पर नियंत्रण तभी रह सकता है जब व्यक्ति पर निंयत्रण हो। व्यक्ति पर निंयत्रण राज्य करे इससे अच्छा है कि व्यक्ति आत्मनियंत्रित होकर ही राज्य संचालन में सहायता करे। व्यक्ति को आत्मनिंयत्रण करने की कला भारतीय अध्यात्म ही सिखा सकता है। इसी कारण जिन लोगों के मन में तनाव और परेशानियां हैं वह भारतीय धर्मग्रंथों खासतौर से श्रीगीता का अध्ययन अवश्य करें तभी इस जीवन रहस्य को समझ पायेंगे।
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यह पाठ मूल रूप से इस ब्लाग ‘शब्दलेख सारथी’ पर लिखा गया है। मेरे अन्य ब्लाग
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संकलक एवं संपादक-दीपक भारतदीप

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