अपने वन प्रवास के दौरान सुतीक्षण के आश्रम से निकलकर जब श्री राम अपनी धर्म पत्नी सीताजी और भ्राता लक्ष्मण में साथ आगे चले। अपने पति द्वारा राक्षसों के वध करने के प्रतिज्ञा से वह दुखी थीं इसलिए उन्होने इससे हटने के लिए उनसे हिंसा छोड़ने का आग्रह किया और निम्नलिखित कथा सुनाई
पूर्वकाल की बात है किसी पवित्र वन में जहाँ मृग और पक्षी बडे आनंद से रहते एक सत्यवादी एवं पवित्र तपस्वी निवास करते थे। उन्हीं की तपस्या में विघ्न डालने के लिए शचिपति इन्द्र किसी योद्धा का रूप धारण कर हाथ में तलवार एक दिन उनके आश्रम पर आये। उन्होने मुनि के आश्रम में अपना उतम खड्ग रख दिया। पवित्र तपस्या में लगे हुए मुनि को धरोहर के रूप में वह खड्ग दे दिया। उस शस्त्र को पाकर मुनि उस धरोहर की रक्षा में लग गए, वे अपने विश्वास की रक्षा के लिए वन में विचरते समय भी उसे अपने साथ रखते थे। धरोहर की रक्षा में तत्पर रहने वाले वे मुनि फल-मूल लेने के लिए जहाँ-कहीं भी जाते, उस खड्ग की साथ लिए बिना नहीं जाते। तप ही जिनका धन था उस मुनि ने प्रतिदिन शस्त्र ढोते रहने के कारण क्रमश: तपस्या का निश्चय छोड़कर अपनी बुद्धि को क्रूरतापूर्ण बना लिया। फिर तो अधर्म ने उन्हें आकृष्ट कर लिया। वे मुनि प्रमादवश रोद्र कर्म में तत्पर हो गये और उस शस्त्र के सहवास से नरक जाना पडा।
इस प्रकार शास्त्र का संयोग होने के कारण पूर्वकाल में उन तपस्वी मुनि को ऐसी दुर्दशा भोगनी पडी। जैसे आग का संयोग ईंधन के जलाने का कारण होता है उसी प्रकार शस्त्रों का संयोग शस्त्रधारी के हृदय में विकार का उत्पादक कहा गया है।
आगे सीता जी कहतीं हैं कि-'मेरे मन में आपके प्रति जो स्नेह और विशेष आदर है उसके कारण मैं आपको उस प्राचीन घटना की याद दिलाती हूँ तथा यह शिक्षा भी देती हूँ कि आपको धनुष लेकर किसी तरह बिना बिः के ही वन में रहने वाले राक्षसों के वध का विचार नहीं करना चाहिए। आपका बिना किसी अपराध के किसी को मारना संसार के लोग अच्छा नहीं समझेंगे। अपने मन और इन्दिर्यों को वश में रखने वाले वीरों के लिए वन में धनुष धारण करने का इतना प्रयोजन है कि वे संकट में पड़े हुए प्राणियों की रक्षा करें।''
अरण्यकाण्ड के नौवें सर्ग से लिए गया यह वृतांत इस उद्देश्य से प्रस्तुत किया गया है कि लोग अस्त्रों-शस्त्रों को शौक के लिए अपने पास भी रखते है और उसके जो परिणाम आते हैं वह बहुत भयावह होते हैं ।
हम भारत, भारती, और भारतीयता के संवाहक हैं और धर्मनिरपेक्षता तामस गुण की
पहचान है(भाग एक) we have an Bharat.,Bharati, bhartiyata Thought, Seculisma
is Tanasi type (part-1)
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पहले तो प्रश्न यह है कि क्या हम सर्वधर्म समभाव की विचाराधारा से सहमत हैं?
जवाब अगर हां है तो फिर यह समझाना पड़ेगा कि धर्म का आशय क्या है? भारत
विश्वगुरु है...
4 years ago
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