समस्त ब्लॉग/पत्रिका का संकलन यहाँ पढें-

पाठकों ने सतत अपनी टिप्पणियों में यह बात लिखी है कि आपके अनेक पत्रिका/ब्लॉग हैं, इसलिए आपका नया पाठ ढूँढने में कठिनाई होती है. उनकी परेशानी को दृष्टिगत रखते हुए इस लेखक द्वारा अपने समस्त ब्लॉग/पत्रिकाओं का एक निजी संग्रहक बनाया गया है हिंद केसरी पत्रिका. अत: नियमित पाठक चाहें तो इस ब्लॉग संग्रहक का पता नोट कर लें. यहाँ नए पाठ वाला ब्लॉग सबसे ऊपर दिखाई देगा. इसके अलावा समस्त ब्लॉग/पत्रिका यहाँ एक साथ दिखाई देंगी.
दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका
-------------------------


Monday, September 11, 2017

हमारा पवित्र अंक 1008 है इसलिये 969 वालों की हिंसा का समर्थन नहीं करते(Hindu Holi number 1008 and hi no enter in Fight between 969 & 786-HindiArticle)


               एक बात समझ में नहीं आती कि 25 अगस्त 2017 से बर्मा में रौहिंग्याओं के विरुद्ध हिंसा का वातावरण चल रहा था पर पांच सितम्बर को भारत के प्रधानमंत्री की चीन के बाद म्यांमार पहुंचने पर ही अचानक उसका प्रचार क्यों बढ़ गया? दिलचस्प बात यह कि बर्मा या म्यांमार ऐसा देश है जो भारत व चीन के बीच संबंधों का संतुलन बनाये हुए है।  कहा जाता है कि वहां की सरकार पर चीन का दबाव है तो अब यह भी देखने को मिला कि उसने भारत के साथ भी अच्छे संबंध बनाने के प्रयास शुरु किये हैं। जिन लोगों को लगता है कि चीन भारत के प्रति शत्रुभाव रखता है उन्हें इस पर अवश्य विचार करना चाहिये कि क्या बर्मा अब चीन के दबाव से मुक्त हो गया है या फिर इसमें चीन की कोई चाल है?
                        बर्मा में रौहिंग्या लोगों का मसला  अब तेजी से उभर रहा है।  मध्य एशिया के आतंकी अपने लिये नया ठिकाना ढूंढने बर्मा आ रहे हैं।  एक बात तय है कि इन्हें सऊदी अरब, कतर, तुर्की व ईरान से धन मिलता है।  यह देश बिना आतंकवाद के विश्व में अपनी जगह नहीं बनाये रख सकते। फिर इधर भारत से उन्होंने दोस्ताना दिखाना शुरु किया है पर अगर मध्य एशिया के आतंकवादी बर्मा आते हैं तो यकीनन भविष्य में भारत को अस्थिर करने की उनकी कोई योजना होगी जो उन्हें आकाओं ने सौंपी होगी। हालांकि अगर वहां आतंकवाद फैलता है तो भारत, चीन, जापान और दक्षिणकोरिया एक मंच पर होंगे यह भी तय है। 
                      वैसे पहले भी बर्मा में रौहिंग्या लोगों के विरुद्ध भड़की हिंसा की विश्व भर में चर्चा हो रही है। इसको एक धर्म का दूसरे धर्म से संघर्ष बताया जा रहा है।  जब धर्म के नाम पर हिंसा हो तो उसके प्रतीकों की चर्चा जरूर होती है।  बर्मा में बौद्ध भिक्षु अशिन बिरथू को वहां का बिन लादेन कहा जा रहा है। अब हमें तो ज्यादा पता नहीं कि सच क्या है क्योंकि प्रचार माध्यम अपने प्रचार के लिये अनेक कहानियां गढ़ लेते है। बहरहाल यह कथित बौद्ध भिक्षु अपने संगठन 969 का विस्तार कर रहा है। अगर हम कहें कि यह धार्मिक प्रतीक 786 और 969 के बीच संघर्ष है तो गलत नहीं होगा। पाकिस्तानी अपने  अरेबिक होने के अहंकार में रौहिंग्याओं के बचाव में उतरे हैं पर चीन से दोस्ती का खौफ है -जिसका बर्मा सरकार पर पूरा नियंत्रण है -पर वह भारत को उसके लिये जिम्मेदार बता रहे हैं। अब कोई इन 786 वालों को समझाओ हम तो सदियों से 1008 अंक धारण करने वाले महात्माओं को मानते हैं और इस तरह की सामूहिक हिंसा झेलते हैं पर न स्वयं करते न करने वालों का समर्थन करते हैं। जय श्रीराम, हर हर महादेव, जय श्रीकृष्ण, जय झूलेलाल।

No comments:

Post a Comment

अध्यात्मिक पत्रिकाएं