आजकल भारतीय योग की पूरे विश्व
में चर्चा है। यह अलग बात है कि अनेक पेशेवर लोगों ने इस पद्धति का लाभ उठाने के
लिये इसका रूप विकृत करने की कोशिश की है। सच बात तो यह है कि योग साधना
अंतमुर््खी विषय है जबकि अनेक योग शिक्षक उसे रंगीन बनाने का प्रयास कर रहे हैं। इस योग के इतने नाम हो गये हैं कि ऐसा लगता है
कि इसके अनेक रूप हैं। जबकि सच्चाई यह है
कि योग अपनी देह, मन और विचार स्थिर कर मौन साधना करना ही
है। हालांकि अनेक निष्काम योग शिक्षकों ने
इस पर अनुंसधान कर इसे नया रूप दिया है
जिससे योग साधना के मूल तत्व परिवर्तित
नहीं होते वरन् व्यायाम भी अच्छा हो जाता है।
जबकि पेशेवर लोगों ने इसको आकर्षक विषय बनाने के साथ ही बहिमुर््खी बना
दिया है।
पतंजलि
योग सूत्र
एक प्रमाणिक कला और विज्ञान है। आज जब हम अपने देश में अस्वस्थ और मनोरोगों के शिकार
लोगों की संख्या को देखते हैं तो इस पद्धति को अपनाने की आवश्यकता अधिक अनुभव होती है। पतंजलि योग एक बृहद
साहित्य है और इसमें केवल आसनों से शरीर को स्वस्थ ही नहीं रखने के साथ ही प्राणायाम तथा ध्यान योग से मन को भी प्रसन्न रखा जा सकता है। यह अंतिम सत्य है
कि दवाईयां
मनुष्य की बीमारियां दूर सकती हैं पर योग तो कभी बीमार ही नहीं पड़ने देता। योग साधना
के नियमित अभ्यास से लाभ कि अनुभूति उसे करने पर ही की जा सकती है|
पतंजलि योग सूत्र में कहा गया हैप्रच्छर्दनविधारणाभ्यां वा प्राणस्य।
हिन्दी में भावार्थ-प्राणवायु को बाहर निकालने और अंदर रोकने के निरंतर अभ्यास चित्त निर्मल होता है।विषयवती वा प्रवृत्तिरुपन्न मनसः स्थितिनिबन्धनी।।
हिन्दी में भावार्थ-विषयवाली प्रवृत्ति उत्पन्न होने पर भी मन पर नियंत्रण रहता है।विशोका वा ज्योतिवस्ती।
हिन्दी में भावार्थ-इसके अलावा शोकरहित प्रवृत्ति से मन नियंत्रण में रहता है।वीतरागविषयं वा चित्तम्।
हिन्दी में भावार्थ-वीतराग विषय आने पर भी मन नियंत्रण में रहता है।
भारतीय योग दर्शन में प्राणायाम का बहुत महत्व है। योगासनों से जहां देह के
विकार निकलते हैं वहीं प्राणायाम
से मन तथा विचारों में शुद्धता आती है। जैसा कि स्वास्थ्य विशेषज्ञ बताते आ रहे हैं
कि इस विश्व में मनोरोगियों का इतना अधिक प्रतिशत है कि उसका सही आंकलन करना संभव
नहीं है। अनेक
लोगों को
तो यह भी पता नहीं कि वह मनोविकारों का शिकार है। इसका कारण यह है कि आधुनिक विकास में भौतिक
सुविधाओं की अधिकता उपलब्धि और उपयेाग के कारण सामान्य मनुष्य का शरीर विकारों का शिकार हो रहा है वहीं मनोरंजन के
नाम पर
उसके सामने जो दृश्य प्रस्तुत किये जा रहे है वह मनोविकार पैदा करने वाले हैं। ऐसी अनेक घटनायें समाचार
पत्रों और टीवी चैनलों पर आती हैं जिसमें किसी फिल्म या टीवी चैनल को देखकर उनके
पात्रों जैसा अभिनय कुछ लोग अपनी जिंदगी में करना चाहते हैं। कई लोग तो अपनी जान गंवा देते हैं। यह तो वह उदाहरण
सामने आते हैं पर इसके अलावा जिनकी मनस्थिति खराब होती है और उसका दुष्प्रभाव मनुष्य के सामान्य
व्यवहार पर पड़ता है उसकी अनुभूति सहजता से नहीं हो जाता।
प्राणायाम से मन और विचारों में जो दृढ़ता आती है उसकी
कल्पना ही की जा सकती है मगर जो लोग प्राणायाम करते और कराते हैं वह जानते हैं कि
आज के समय में प्राणायाम ऐसा ब्रह्मास्त्र है जिससे समाजको बहुत लाभ हो सकता है।
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दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप’’
ग्वालियर मध्यप्रदेश
ग्वालियर मध्यप्रदेश
Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
Gwalior Madhyapradesh
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर
athor and editor-Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep",Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com
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यह पाठ मूल रूप से इस ब्लाग‘दीपक भारतदीप की अंतर्जाल पत्रिका’ पर लिखा गया है। अन्य ब्लाग
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