अक्सर
हमारे देश में बढ़ते अपराधों की चर्चा की जाती है। अनेक बुद्धिमान लोग राजनीति में अपराधियों
के घुस आने पर चिंता जताते हैं। हम देख रहे
हैं कि अनेक ऐसे मामले सामने आते हैं जिसमें कथित अभियुक्तों के विरुद्ध कार्यवाही न करने या उनका मामला लटकानें की बात सामने आती
है। अब तो प्रचार माध्यमों में कुछ लोग खुलकर
यह कहने लगे हैं कि आम आदमी के साथ अन्याय
होने पर उन्हें राज्य से किसी सहयोग की अपेक्षा नहीं रहती।
देश का
राजनीतिक, सामाजिक तथा आर्थिक परिदृश्य अत्यंत विरोधाभासी है। जब कोई बड़ा कांड होता है तो हल्ला खूब मचता है।
चारों तरफ से आवाजें आने लगती हैं कि अभियुक्तों को पकड़कर सजा दो। जब अभियुक्त पकड़ा जाता है तो फिर प्रचार माध्यम
यह बताने लगते हैं कि उसने किसी मजबूरी में आकर अपराध किया। किसी को सजा होती है तो उसके प्रति सहानुभूति जताने
लगते हैं। हर अपराध पर शोर मचाने वाले प्रचार
माध्यम बाद में अपराधियों में नायकत्व का आभास
कराते हुए विलाप भी करते हैं। ऐसी एक नहीं अनेक घटनायें हैं जिनमें प्रचार माध्यम
एक अभियुक्त के प्रति घृणा तो दूसरे के लिये सहानुभूति वाली सामग्री प्रचारित करते
हैं। इतना ही नहीं कहीं कई बार किसी कांड का
कोई कथित अभियुक्त पकड़ा जाये तो जांच एजेंसियों की कहानी पर भी वह आपत्तियां दिखाते
हैं।
मनुस्मृति में कहा गया है कि
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साहसे
वर्तमानं तु यो मर्वयति पार्थिवः।
सः विनाशं
व्रजत्याशु विद्वेषं चाधिगच्छति।
हिन्दी में भावार्थ-दुस्साहस करने वाले मनुष्य को यदि राज्य प्रमुख अनदेखा
कर उसे छोड़ता है तो उसका स्वयं का शीघ्र विनाश निश्चित है। दुस्साहस को अनदेखा करने वाले राज्य प्रमुख के प्रति
प्रजा में विद्वेष पैदा होता है।
न मित्रकारणाद्रांजा
विपुलाद्वधनागमात्।
समुत्सुजेत्साहसिकान्सर्वभूतभ्भूत्भवाहात्।।
हिन्दी में
भावार्थ-राजा को चाहिए कि वह
स्नेह तथा लालच होने से किसी भी ऐसे अपराध को न छोड़े जो प्रजा में भय उत्पन्न करता
है।
पिछले
अनेक सालों में ऐसी अनेक घटनायें हुई हैं जिससे आमजनों को लगता है तो अब तो हत्या,
डकैती, ठगी तथा अन्य धृणित अपराध
बड़े लोगों के संरक्षण के बिना संभव नहीं है।
यह भाव भारत की एकता तथा अखंडता के
लिये खतरनाक है। किसी भी अपराधी या अभियुक्त
को उच्च स्तर पर संरक्षण मिलने की बात सच हो या नहीं पर ऐसा होने का प्रचार जनता के
विश्वास को कम करता है। हमारे देश में अपराध
बढ़ते जा रहे हैं पर जिस तरह प्रचार माध्यम
कभी कभी उनसे सहानुभूति वाली सामग्री प्रचारित करते हैं उससे तो यह लगता है कि जैसे
अपराध कोई हवा कर जाती है। हमारे देश में तो सभी सभ्य देवता है। इसलिये जांच एजेंसियों तथा न्याय प्रणाली से जुड़े
लोगों को अपराधों के प्रति हमेशा कठोर भाव न केवल अपनाना चाहिये बल्कि उसे प्रचारित
भी करना चाहिए।
दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप’’
ग्वालियर मध्यप्रदेश
ग्वालियर मध्यप्रदेश
Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
Gwalior Madhyapradesh
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर
athor and editor-Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep",Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com
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यह पाठ मूल रूप से इस ब्लाग‘दीपक भारतदीप की अंतर्जाल पत्रिका’ पर लिखा गया है। अन्य ब्लाग
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