जीवन में कोई भी काम सोच समझ कर करना ही मनुष्य के विवेकवान होने
का प्रमाण हैं। इस संसार में सात्विक, राजस और तामस तीन प्रकार की
प्रवृत्तियों में स्वामी रहते हैं। सात्विक व्यक्ति केवल प्रार्थना करने
पर ही निष्काम भाव से काम करते हैं जबकि राजस व्यक्ति फल के प्रस्ताव मिलने
पर ही किसी काम के लिये तैयार होते हैं। जिन लोगों में तामस वृत्ति है वह न
तो स्वयं किसी का काम करते हैं न ही अपने काम के लिये तत्पर होते हैं।
उनसे किसी काम निकलने की अपेक्षा करना ही व्यर्थ है। इसलिये जब हम अपने
जीवन में किसी विशेष अभियान में रत हों या प्रतिदिन के नित्यकर्म में, सदैव
ही इस बात का ध्यान रखें कि जहां तक हो सके किसी पर शब्दिक या दैहिक
प्रहार न करें।
हर कर्म का फल अनिश्चित है। जीवन की अपनी धारा है जिस पर वह चलता है पर मनुष्य मन का कोई भरोसा नहीं है। हम दूसरों की क्या कहें, पहले यह भी देख लें कि हमारा मन स्वयं के कितने नियंत्रण में है? संसार के भौतिक लक्ष्यों की पूर्ति के लिये हमेशा ही हम राजस प्रवृत्ति के लोगों के संपर्क में रहते हैं जिनके स्वभाव में ही फल की आकांक्षा के साथ ही अहंकार, मोह तथा काम वासना की प्रवत्तियां शासन करती हैं। हम से अधिक धनवान, पदवान और बलवान लोग कभी भी अपने से लघु स्तर के व्यक्ति से अपमान या आक्रमण को सहजता से नही लेते और न ही उसे सम्मान देने का भाव उनके हृदय में रहता है। ऐसे में उन पर हावी होने का प्रयास निरर्थक होता है। उनके सामने झुक कर ही काम निकालना चाहिये।
हर कर्म का फल अनिश्चित है। जीवन की अपनी धारा है जिस पर वह चलता है पर मनुष्य मन का कोई भरोसा नहीं है। हम दूसरों की क्या कहें, पहले यह भी देख लें कि हमारा मन स्वयं के कितने नियंत्रण में है? संसार के भौतिक लक्ष्यों की पूर्ति के लिये हमेशा ही हम राजस प्रवृत्ति के लोगों के संपर्क में रहते हैं जिनके स्वभाव में ही फल की आकांक्षा के साथ ही अहंकार, मोह तथा काम वासना की प्रवत्तियां शासन करती हैं। हम से अधिक धनवान, पदवान और बलवान लोग कभी भी अपने से लघु स्तर के व्यक्ति से अपमान या आक्रमण को सहजता से नही लेते और न ही उसे सम्मान देने का भाव उनके हृदय में रहता है। ऐसे में उन पर हावी होने का प्रयास निरर्थक होता है। उनके सामने झुक कर ही काम निकालना चाहिये।
कौटिल्य के अर्थशास्त्र में में कहा गया है कि
--------------------
समाक्रान्तो बलावता काङ्गवन्नाधार्शिनी वियम्।
आश्रयेद्वेतसी वृति वृति न भौजङ्गी कथञ्वन।।
--------------------
समाक्रान्तो बलावता काङ्गवन्नाधार्शिनी वियम्।
आश्रयेद्वेतसी वृति वृति न भौजङ्गी कथञ्वन।।
हिन्दी में भावार्थ-बलवान
से आक्रात हुआ व्यक्ति अचल लक्ष्मी को प्राप्त करता है बस उसमें बैंत की
तरह वायु के सामने झुकने जैसी वृत्ति चाहिये। सांप की तरह फन उठाकर
फुफकारने की प्रवृत्ति का आश्रय कभी न लें।
आगत विग्रहं विद्वानुपायैः प्रशम्न्नयेत्।
विजयस्य ह्यनित्यत्वाद्रभासेन न सम्पतेत्।।
विजयस्य ह्यनित्यत्वाद्रभासेन न सम्पतेत्।।
हिन्दी में भावार्थ-विद्वान
को उचित है कि प्राप्त हुए उपायों से विग्रह को शांत करें। किसी भी
अभियान में विजय प्राप्त होना निश्चित नहीं है इसलिये किसी पर अचानक
प्रहार न करें।
जहां तक हो सके हमें अपने सात्विक वृत्ति को ही धारण करे हुए अपने से लघु स्तर के व्यक्ति को सम्मान और प्यार देने के साथ ही उस पर दया करते हुए काम करना चाहिये। देखा जाये तो बड़े अभियानों में धनवान, पदवान और कथित बलवान लोग कभी साथ नहीं निभाते जितना लघु स्तर के लोग कर सकते हैं। नित्य कर्म में लघु स्तर के लोग काम कर जाते हैं और बृहद स्तर वाले मजबूरियां जताते हुए मुंह फेर लेते हैं। सबसे बड़ी बात है मनुष्य का अहंकार जिसे कभी धारण नही करना चाहिये। संसार के सारे काम नम्रता से पूर्ण करना ही एक सहज उपाय है जिसे कभी छोड़ना नहीं चाहिये।
जहां तक हो सके हमें अपने सात्विक वृत्ति को ही धारण करे हुए अपने से लघु स्तर के व्यक्ति को सम्मान और प्यार देने के साथ ही उस पर दया करते हुए काम करना चाहिये। देखा जाये तो बड़े अभियानों में धनवान, पदवान और कथित बलवान लोग कभी साथ नहीं निभाते जितना लघु स्तर के लोग कर सकते हैं। नित्य कर्म में लघु स्तर के लोग काम कर जाते हैं और बृहद स्तर वाले मजबूरियां जताते हुए मुंह फेर लेते हैं। सबसे बड़ी बात है मनुष्य का अहंकार जिसे कभी धारण नही करना चाहिये। संसार के सारे काम नम्रता से पूर्ण करना ही एक सहज उपाय है जिसे कभी छोड़ना नहीं चाहिये।
दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप’’
ग्वालियर मध्यप्रदेश
Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
Gwalior Madhyapradesh
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर
athor and editor-Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep",Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com
http://zeedipak.blogspot.com
यह पाठ मूल रूप से इस ब्लाग‘दीपक भारतदीप की अंतर्जाल पत्रिका’ पर लिखा गया है। अन्य ब्लाग
1.दीपक भारतदीप की शब्द लेख पत्रिका
2.शब्दलेख सारथि
3.दीपक भारतदीप का चिंतन
४.शब्दयोग सारथी पत्रिका
५.हिन्दी एक्सप्रेस पत्रिका
६.अमृत सन्देश पत्रिका
No comments:
Post a Comment