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दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका
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Saturday, February 23, 2013

कौटिल्य का अर्थशास्त्र-समय आने पर शत्रु पर हमला अवश्य करें (samay aane par shatru par hamla avshya karen-kautilya ka arthshastra)

         इस संसार में तमाम तरह के लोग हैं।  सभी अच्छे नहीं तो बुरे भी नहीं है पर इतना तय है कि जिन लोगों में दूसरों को परेशान करने  वाली तामसी वृत्ति है उनका सामना कभी भी करना पड़ सकता है।  ऐसे कुछ लोग हैं जो दूसरों पर दैहिक या मानसिक आक्रमण अवश्य करते है।  उनको दो प्रकार के होते हैं।  एक तो वह जिनके पास धन, पद या बाहुबल की शक्ति है वह अपने अहंकार में चाहे जब जिससे लड़ जाते हैं।  दूसरे वह भी है जिनमें कोई गुण नहीं होता जिससे उनकी प्रवृत्ति नकारात्मक हो जाती है। उनकी मानसिकता इतनी कुंठित होती है कि वह दूसरों को नीचा दिखाने या किसी की भी मजाक उड़ाने से बाज नहीं आते।
          जहां तक हो सके ऐसे लोगों की उपेक्षा ही करना चाहिये पर जब वह शत्रुता की सीमा तक आ जायें तो फिर उन्हे बिना दंडितं छोड़ना नहीं चाहिये।  अगर धन, पद और बाहुबल में ऐसे लोग अधिक हों तब उन पर लगातार दृष्टि रखना चाहिये। जब वह स्वयं किसी विपत्ति में हों तब बिना किसी झिझक के उन पर आक्रमण अपना बदला चुकाने में चूकना नहीं चाहिए।  यह सच है कि यह कृत्य सात्विक प्रवृत्ति का नहीं वरन्  राजस प्रवृत्ति का प्रमाण है पर इस दैहिक जीवन में अपनी रक्षा करना बुरा नहीं है।
कौटिल्य का अर्थशास्त्र में कहा गया है कि
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यदा क्षमस्तु प्रसमं पराक्रमदूर्जितमायमित्रम्।
तदा हि यायादहितानि कुर्वन्यरस्य या कर्षणपीडनानि।
    हिन्दी में भावार्थ-जब अपना शत्रु पराक्रम में बढ़ा हुआ हो पर अपनी शक्ति से उसे जीतना संभव हो तब उसका अहित करने की दृष्टि से उस पर आक्रमण करें।
प्रायेण संतो व्यसने रिपूर्णा यातव्यमित्येव सामादिशान्ति।
तत्रेव पक्षी व्यसने हि नित्यं क्षमस्तुसन्नभ्युदितोऽभियायात्।
        हिन्दी में भावार्थ-महापुरुषों का मानना है कि जिस पुरुष में दूसरे पर आक्रमण करने की प्रवृत्ति है उस पर समय आने पर आक्रमण अवश्य करें।          
योगी और तत्वज्ञानी सात्विक, राजसी और तामसी तीनों प्रवृत्तियों को जानते हैं।  मूल रूप से उनका हृदय सात्विक रंग से रंगा होता है पर यह भी जानते हैं कि इस जीवन में व्यवहार के दौरान आने वाले लोगों से स्वयं जैसा होने की अपेक्षा करना उचित नहीं है।  अतः वह दूसरों की प्रवृत्ति के अनुसार अपने व्यवहार और व्यक्त्तिव का रूप तय करते हैं।  अक्सर लोग यह सोचते हैं कि अगला आदमी तो ज्ञान में सराबोर रहने वाला आदमी है इसलिये उसके साथ जैसा भी व्यवहार करो चुपचाप झेल जायेगा।  इसलिये अपने साथ भेदभाव, बदतमीजी या फिर तनाव पैदा करने वाले लोगो को कभी दंडित भी करना चाहिये।  यह नहीं भूलना चाहिये कि इस संसार में तामसी प्रवृत्तियों की प्रधानता वाले बहुत से लोग हैं जो दूसरे का अहित कर प्रसन्नता का अनुभव करते हैं।  समय आने पर उन्हें दंडित करना आवश्यक है।
दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप’’
ग्वालियर मध्यप्रदेश
Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
Gwalior Madhyapradesh
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर 



Saturday, February 16, 2013

कौटिल्य का अर्थशास्त्र-बैंत की तरह झुककर ही उपलब्धि प्राप्त करना संभव (bent kee tarah jhukkar hee uplabdhi prapt karna sambhav-economics of kautilya)

        जीवन में कोई भी काम सोच समझ कर करना ही मनुष्य के विवेकवान होने का प्रमाण हैं।  इस संसार में सात्विक, राजस और तामस तीन प्रकार की प्रवृत्तियों में स्वामी रहते हैं।  सात्विक व्यक्ति केवल प्रार्थना करने पर ही निष्काम भाव से काम करते हैं जबकि राजस व्यक्ति फल के प्रस्ताव मिलने पर ही किसी काम के लिये तैयार होते हैं। जिन लोगों में तामस वृत्ति है वह न तो स्वयं किसी का काम करते हैं न ही अपने काम के लिये तत्पर होते हैं।  उनसे किसी काम निकलने की अपेक्षा करना ही व्यर्थ है। इसलिये जब हम अपने जीवन में किसी विशेष अभियान में रत हों या प्रतिदिन के नित्यकर्म में, सदैव ही इस बात का ध्यान रखें कि जहां तक हो सके किसी पर शब्दिक या दैहिक प्रहार न करें।
          हर कर्म का फल अनिश्चित है।  जीवन की अपनी धारा है जिस पर वह चलता है पर मनुष्य मन का कोई भरोसा नहीं है। हम दूसरों की क्या कहें, पहले यह भी देख लें कि हमारा मन स्वयं के कितने नियंत्रण में है?  संसार के भौतिक लक्ष्यों की पूर्ति के लिये हमेशा ही हम राजस प्रवृत्ति के लोगों के संपर्क में रहते हैं जिनके स्वभाव में ही फल की आकांक्षा के साथ ही अहंकार, मोह तथा काम वासना की प्रवत्तियां शासन करती हैं।  हम से अधिक धनवान, पदवान और बलवान लोग कभी भी अपने से लघु स्तर के व्यक्ति से अपमान या आक्रमण को सहजता से नही लेते और न ही उसे सम्मान देने का भाव उनके हृदय में रहता है।  ऐसे में उन पर हावी होने का प्रयास निरर्थक होता है।  उनके सामने झुक कर ही काम निकालना चाहिये।
कौटिल्य के अर्थशास्त्र में में कहा गया है कि
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समाक्रान्तो बलावता काङ्गवन्नाधार्शिनी वियम्।
आश्रयेद्वेतसी वृति वृति न भौजङ्गी कथञ्वन।।
          हिन्दी में भावार्थ-बलवान से आक्रात हुआ व्यक्ति अचल लक्ष्मी को प्राप्त करता है बस उसमें बैंत की तरह वायु के सामने झुकने जैसी वृत्ति चाहिये। सांप की तरह फन उठाकर फुफकारने की प्रवृत्ति का आश्रय कभी न लें।
आगत विग्रहं विद्वानुपायैः प्रशम्न्नयेत्।
विजयस्य ह्यनित्यत्वाद्रभासेन न सम्पतेत्।।
     हिन्दी में भावार्थ-विद्वान को उचित है कि प्राप्त हुए उपायों से विग्रह को शांत करें। किसी भी अभियान  में विजय प्राप्त होना निश्चित नहीं है इसलिये किसी पर अचानक प्रहार न करें।
        जहां तक हो सके हमें अपने सात्विक वृत्ति को ही धारण करे हुए अपने से लघु स्तर के व्यक्ति को सम्मान और प्यार देने के साथ ही उस पर दया करते हुए काम करना चाहिये।  देखा जाये तो बड़े अभियानों में धनवान, पदवान और कथित बलवान लोग कभी साथ नहीं निभाते जितना लघु स्तर के लोग कर सकते हैं।  नित्य कर्म में लघु स्तर के लोग काम कर जाते हैं और बृहद स्तर वाले मजबूरियां जताते हुए मुंह फेर लेते हैं। सबसे बड़ी बात है मनुष्य का अहंकार जिसे कभी धारण नही करना चाहिये।  संसार के सारे काम नम्रता से पूर्ण करना ही एक सहज उपाय है जिसे कभी छोड़ना नहीं चाहिये।
दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप’’
ग्वालियर मध्यप्रदेश
Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
Gwalior Madhyapradesh
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर 



Monday, February 4, 2013

कौटिल्य का अर्थशास्त्र-ज्ञानी जिस काम की तारीफ करें वही धर्म (gyani jis kaam kee tarif karen vahi dharma)

       प्रचार माध्यमों में-टीवी चैनल एवं समाचार पत्र पत्रिकाएँ-हमारे देश के प्रचलित  धर्मों के विषय पर लेकर अनेक प्रकार की बहस होती है। देश में कुछ बुद्धिमान इतने धर्मनिरपेक्ष हैं कि उनको भारतीय अध्यात्म में केवल जातिवाद और स्त्री शोषण के अलावा कुछ नज़र नहीं आता है।  यहां तक तो सब ठीक है पर धर्म को लेकर उनका नजरिया अजीब लगता है।  वह विश्व में अनेक धर्मो की उपस्थिति स्वीकार्य मानते हैं।  उनकी नजर में सभी धर्म समान हैं।  मतलब उनकी दृष्टि में धर्म केवल पूजा पद्धतियां ही हैं। यह अलग बात है की भारतीय धर्मों पर उनकी ड्रिसथी हमेशा वक्र ही रहती है।   जबकि  हमारा अध्यात्म दर्शन किसी विशेष पूजा पद्धति का न तो समर्थन करता है न विरोध।  वह तो नैतिक आचरण को ही धर्म मानता है।  मूल बात भी है कि हमारे प्राचीन धर्म तथा अध्यात्म ग्रंथों में धर्म को कोई नाम नहीं दिया गया है।  किसी व्यक्ति विशेष की सत्ता को स्वीकार न कर निरंकार कि उपासना को महत्व नहीं दिया गया है।
कौटिल्य का अर्थशास्त्र में कहा गया है कि
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यमाय्र्याः क्रियामाणं हिः शंसत्यागगमवेदिनः।
स धम्माय विगर्हन्ति तमधम्र्मं परिचक्षते।।

                  हिन्दी में भावार्थ-शास्त्र के ज्ञाता श्रेष्ठ पुरुष जिस कार्य की प्रशंसा करें वही धर्म है और जिसकी निंदा करें वही अधर्म हैं।
       हम जब विदेशी विचाराधाराओं को देखते हैं तो वह पूजा पद्धतियों को ही धर्म माना जाता हैं।  इतना ही नहीं मानवीय जीवन में उनका हस्तक्षेप इतना है कि खानपान, रहन सहन और भाषा को भी धर्म से जोड़ दिया जाता है जबकि उनका आधार प्रकृति के अनुसार तय होता है। इसका सीधा मतलब यह है कि पाश्चात्य विचाराधारायें मनुष्य के बाह्य रूप के आधार पर धर्म का स्वरूप तय करती हैं और इस देह को धारण करने वाला आत्मा जिसे हम अध्यात्म भी कह सकते हैं कोई अर्थ नहीं रखता।  हमारा अध्यात्मिक ज्ञान देह और आत्म दोनों के सत्य को धारण करता है। इतना ही नहीं विदेशी  विचारधाराओं में पूजापद्धति से  मेल न रखने वाले व्यक्तियों को निंदनीय माना जाता है।  यही कारण है कि पूरे विश्व में धर्म के आधार पर वैमनस्य बढ़ता जा रहा हैं इसके विपरीत भारतीय दर्शन अध्यात्म ज्ञान को संचित करता है।  इसमें यह माना जाता है कि मनुष्य अपनी देह और उसमें विराजमान मन, बुद्धि के साथ अहंकार की प्रवृत्ति पर नियंत्रण कर एक सुविधाजनक जीवन बिता सकता है। किसी विशेष प्रकार की पूजा पद्धति अपनाने या वस्त्र पहनने की बात उनमें नहीं है।  भारतीय अध्यात्म दर्शन  मनुष्य को आत्म निर्माण के लिये प्रेरित करता है।  इसके विपरीत विदेशी विचाराधारा समाज निर्माण की बात करती है जबकि व्यक्ति निर्माण के बिना ऐसा करना कठिन है।  यही कारण है कि भारतीय अध्यात्म दर्शन वैज्ञानिक है।  कथित रूप से सभी धर्मों की बात कहना अपने आप में इसलिये अजीब लगता है क्योंकि धर्म का कोई नाम नहीं होता।  नैतिक आचरण में पवित्रता रखना, विचारों में शुद्धता तथा परोपकार की भावना ही धर्म का प्रमाण है। भारतीय अध्यात्म विद्वान इसी आधार पर धर्म और अधर्म का रूप तय करते हैं कि उसके नाम से पहचानते हैं।
दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप’’
ग्वालियर मध्यप्रदेश
Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
Gwalior Madhyapradesh
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर 



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