कहा जाता है कि फिट
है वही हिट है। दरअसल भौतिक उपलब्धियों के लिये जुटा इंसान न तो अपनी देह
को स्वस्थ रखने के लिये प्रयास करता है और न ही अध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त
कर आत्मबली हो पाता है। जीवन में एक बार ऐसा समय अवश्य ही आता है जब वह थक
जाता है। यह थकावट उसे वृद्धावस्था में ही पहुंचा देती है। ऐसे में
शारीरिक तथा आत्मिक रूप से क्षीण होकर मनुष्य के पास आर्तनाद करने के अलावा
कोई मार्ग शेष नहीं रह जाता। हमारे देश में व्यायाम आदि को कभी आदत की तरह
नहीं अपनाया गया। अपनी ही योग कला को केवल सिद्धों तथा नकारा लोगों के
लिये आवश्यक माना गया है। यही कारण है कि आजकल हम अपने आसपास शारीरिक तथा
दिमागी रूप से विकारग्रस्त लोगों का से भरा समाज देख रहे हैं।
महान नीति विशारद चाणक्य कहते हैं कि
----------------------
यस्मिन् रुष्टे भयं नास्ति तुष्टे नैंव धनऽऽगमः।
निग्रहोऽनुग्रहो नास्ति स रुष्टः किं करिष्यति।।
‘‘जिसके नाराज होने पर किसी प्रकार का भय नहीं हो और नही प्रसन्न होने पर किसी फल की आशा है और जो दण्ड देने का सामर्थ्य भी नहीं रखता वह गुस्सा होकर कर भी क्या लेगा?’’
----------------------
यस्मिन् रुष्टे भयं नास्ति तुष्टे नैंव धनऽऽगमः।
निग्रहोऽनुग्रहो नास्ति स रुष्टः किं करिष्यति।।
‘‘जिसके नाराज होने पर किसी प्रकार का भय नहीं हो और नही प्रसन्न होने पर किसी फल की आशा है और जो दण्ड देने का सामर्थ्य भी नहीं रखता वह गुस्सा होकर कर भी क्या लेगा?’’
पश्चिमी आधार पर किये गया व्यायाम भी बुरा नहीं है अगर नियमित रूप से किया
जाये मगर हमारे देश में लोगों ने जीवन शैली तो ब्रिटेन और अमेरिका जैसी
अपना ली है पर वहां जो कसरत करने का नियम है उसका पालन नहीं करते। सुविधाओं
ने इतना विलासी बना दिया है कि हमारे यहां अस्वस्थ लोगों की संख्या बढ़ रही
है। हमारे यहां की योग कला तो न केवल शारीरिक रूप से शक्तिशाली बनाती है
वरन मानसिक रूप से दृढ़ भी बनाती है। आज के समय में जब भौतिकवाद के चलते
आदमी अकेला होता जा रहा है तब यह आवश्यक है कि अपने बल को बनाये रखे। यह
सभी जानते हैं कि जब तक हमारी देह में सामर्थ्य है तभी तक सारा संसार हमारे
साथ है और असमर्थ होने पर अपने भी त्याग देते हैं। इसके बावजूद अगर कोई
अपने स्वास्थ्य पर ध्यान नहीं देता तो उसे अज्ञानी ही माना जा सकता है।
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर
athor and editor-Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep",Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com
http://zeedipak.blogspot.com
यह पाठ मूल रूप से इस ब्लाग‘दीपक भारतदीप की अंतर्जाल पत्रिका’ पर लिखा गया है। अन्य ब्लाग
1.दीपक भारतदीप की शब्द लेख पत्रिका
2.शब्दलेख सारथि
3.दीपक भारतदीप का चिंतन
४.शब्दयोग सारथी पत्रिका
५.हिन्दी एक्सप्रेस पत्रिका
६.अमृत सन्देश पत्रिका
No comments:
Post a Comment