हम अपने ज्ञान और विचार से किसी मूर्ख व्यक्ति को बुद्धिमान बना सकते हैं या दुष्ट में सज्जनता ला सकते हैं यह सोचना भी ठीक नहीं है। अनेक बार कुछ अल्पज्ञानी लोग अपने ज्ञान का बखान सार्वजनिक रूप से लोगों के बीच में बैठकर करते हैं यह सोचकर कि वह उनको सुधार लेंगे और समाज में बुद्धिमार का दर्जा पायेंगे। यह उनके अपूर्ण ज्ञान का परिचायक ही है क्योंकि वह पीठ पीछे लोगों की हंसी का पात्र बनते हैं। अनेक बार उनको ज्ञानी कहकर मजाक भी बनाया जाता है। सामान्यजन उनको केवल बकवादी समझते हैं।
दरअसल इस संसार के विषय इतने व्यापक और आकर्षक हैं उनमें सभी लोग रमे हुए हैं। उनके लिये उनका मोह, लोभ और क्रोध ही सत्य है। अल्पज्ञानी लोग इसे नहीं जानते पर तत्व ज्ञानी श्रीमद्भागत गीता में वर्णित यह तथ्य नहीं भूलते जिसमें भगवान ने कहा है कि हजारों में भी कोई एक मुझे भजता है और उनमें भी हजारों में से कोई एक मुझे पाता है। स्पष्टतः यही कहा गया है कि सामान्य मनुष्यों में ज्ञानी उंगलियों पर गिनने लायक ही होंगे।
नीति विशारद चाणक्य ने अपनी चाणक्य नीति में कहा है कि
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अन्तःसारविहीनानामुपदेशो न जायते।
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अन्तःसारविहीनानामुपदेशो न जायते।
मलयाचलसंसर्गात् न वेणुश्चन्दनायते।।
‘‘जिसके अंदर योग्यता का अभाव है और जिसका हृदय अत्यंत मैला है उस पर किसी के उपदेश वैसे ही कोई प्रभाव नहीं होता जैसे मलयागिरी से आने वाली वायु के स्पर्श से भी बांस चंदन नहीं बनता।
यस्य नास्ति स्वयं प्रज्ञा शास्त्रं तस्य करीति किम्।
लोचनाभ्यां विहीनस्य दर्पणः किं करिष्यति।।
‘‘जिसके पास स्वयं ही बुद्धि नहीं है वेद शास्त्र उसे कोई लाभ नहीं कर सकते। वैसे ही जैसे जन्मांध व्यक्ति के दर्पण कोई कार्य नहीं कर सकता।
दुर्जनं सज्जनं कर्तुमुपायो न हि भूतले।
अपानं शतधा धौतं न श्रेष्ठमिन्द्रियं भवेत्।।
‘‘दुष्ट व्यक्ति को सज्जन बनाने के लिये भूमि पर कोई भी उपाय नहीं है जैसे मलत्याग करने वाली इंद्रिय को सौ प्रकार से धोने पर भी वह श्रेष्ठ नहीं हो पाती।
‘‘जिसके अंदर योग्यता का अभाव है और जिसका हृदय अत्यंत मैला है उस पर किसी के उपदेश वैसे ही कोई प्रभाव नहीं होता जैसे मलयागिरी से आने वाली वायु के स्पर्श से भी बांस चंदन नहीं बनता।
यस्य नास्ति स्वयं प्रज्ञा शास्त्रं तस्य करीति किम्।
लोचनाभ्यां विहीनस्य दर्पणः किं करिष्यति।।
‘‘जिसके पास स्वयं ही बुद्धि नहीं है वेद शास्त्र उसे कोई लाभ नहीं कर सकते। वैसे ही जैसे जन्मांध व्यक्ति के दर्पण कोई कार्य नहीं कर सकता।
दुर्जनं सज्जनं कर्तुमुपायो न हि भूतले।
अपानं शतधा धौतं न श्रेष्ठमिन्द्रियं भवेत्।।
‘‘दुष्ट व्यक्ति को सज्जन बनाने के लिये भूमि पर कोई भी उपाय नहीं है जैसे मलत्याग करने वाली इंद्रिय को सौ प्रकार से धोने पर भी वह श्रेष्ठ नहीं हो पाती।
ऐसे में तत्वाज्ञानी केवल उचित स्थानों पर ही अपनी चर्चा रखते हैं। अगर कोई अपना ज्ञान सार्वजनिक रूप से बघार रहा है तो समझें कि वह अल्पज्ञानी या केवल तोता रटंत वाला आदमी है। दूसरी बात यह कि ज्ञानी आदमी को चाहिए कि अपना कर्म करते रहें और दूसरी किसी आदमी से यह अपेक्षा न करें कि कोई अकारण सम्मान या सहायता करे। लोगों में काम, क्रोध, मोह और अज्ञान का ऐसा जाल छाया रहता है कि वह अपने स्वार्थों से प्रथक नहीं हो सकते। दुष्ट और मूर्ख लोगों के साथ तो यह अपेक्षा कभी करना भी नहीं चाहिए कि वह कभी सुधरेंगे। उनको सुधारने के प्रयास में अपनी समय और ऊर्जा नष्ट करना ही है।
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संकलक, लेखक और संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर
athor and editor-Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep",Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com
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यह पाठ मूल रूप से इस ब्लाग‘दीपक भारतदीप की अंतर्जाल पत्रिका’ पर लिखा गया है। अन्य ब्लाग
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