सोच नहीं वित हानि को, जो न होन हित हानि
कविवर रहीम कहते है कि जीवन में बुरे दिन आने पर सब लोग पहचानना भी भूल जाते हैं। ऐसे समय में अपने मित्रों और रिश्तदारों से सहानुभूति मिल जाये तो अच्छा लगता है।
वर्तमान संदर्भ में संपादकीय व्याख्या- वर्तमान समय में जब तक किसी के पास धन है लोगों का जमावड़ा उसके आसपास रहता है और जैसे ही उसके बुरे दिन आये तो सब मूंह फेर जाते हैं। कोई भी मित्र या रिश्तेदार आर्थिक दृष्टि के परेशान किसी भी आदमी के पास फटकने को तैयार नहीं होता। ऐसे में अगर कोई रिश्तेदार या मित्र थोड़ी ही सहानुभूति जताए तो मानसिक रूप के सुख मिलता है पर आजकल वह संभव नहीं हैं। क्योंकि जब पेसा होता है तो आदमी अपना अहंकार दिखाता है और लोग उससे नाराज हो जाते हैं और इसलिये बाद में उससे दूरी बना लेते हैं।
जो लोग संपन्नता और सुख के समय विनम्र रहते हैं उनको इस स्थिति का सामना नहीं करना पड़ता। इसके साथ ही अगर अपने पास अगर धन,वैभव या कोई बड़ी उपलब्धि हो और लोग हमारा सम्मान करते हों तो यह भ्रम नहीं पालना चाहिए कि वह हमारे निजी गुणों की वजह से है।
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संकलक एवं संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
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