पुराने नुस्खे हैं राजाओं के, तुम प्रजा होकर क्यों फंस जाते हो।
नस्ल पूछे बिना रेत पांव जला देती, जल कर देता है शीतल
बोझ उठाये कंधे पर अपना, तुम क्यों सवाल किये जाते हो।
धर्म, जाति और भाषा के गुटों की इस पुरानी जंग में,
अपनी अकेली जिंदगी को क्यों उलझाये जाते हो,
इंसान और इंसानियत का नारा भी एक धोखा है,
आदतें है सभी की अलग अलग क्यों भूल जाते हो।
इंसानों में भी होते हैं आम और खास शख्सियत के मालिक,
ओ आम इंसानो! तुम क्यों बड़ों के जाल में फंस जाते हो।
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संकलक,लेखक एवं संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
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बहुत खूब .. रक्षाबंधन की बधाई और शुभकामनाएं !!
ReplyDeleteरक्षा बंधन की हार्दिक शुभकामनाएँ.
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