आवासः क्रियतां गंगे पापहारिणी वारिणि
स्तन,ये तरुपया वा मनोहारिणी हारिणी
हिंदी में भावार्थ- मनुष्य को अपने पापों से बचने के लिये गंगा के किनारे जाकर वैराग्यपूर्ण जीवन व्यतीत करना चाहिये या फिर सुंदर हार पहने नारी के साथ संपर्क रखते हुए गृहस्थ जीवन व्यतीत करना चाहिये।
वर्तमान संपादकीय व्याख्या-अपने जीवन में कभी भी मानसिक अंतद्वंद्व को स्थान नहीं देना चाहिए। अनेक लोगों को लगता है अगर वह विवाह नहीं करते तो सुखी रहते पर फिर भी करते हैं। विवाह करने पर धर की जिम्मेदारी आने से आदमी अनेक बार परेशान हो जाता है और तब उसे वैराग्य पूर्ण जीवन सही लगता है। दूसरी तरफ ऐसे लोग भी है जो गृहस्थ होने पर वैरागी होने का दिखावा करते हैं। जिन लोगों ने पहले वैराग्य लिया वह दूसरे रूप में पुनः विषयों की तरफ लौट आते हैं। भर्तृहरि जी का संदेश यही है कि अगर हमने विषयों को ओढ़ लिया है तो फिर उनमें मन लगाते हुए अपना काम करना चाहिये। अगर वैराग्य लिया है तो फिर विषयों से परे होने चाहिये। मध्य स्थिति में फंसे होन पर केवल कष्ट ही मिल सकता है। अगर हमारे ऊपर घर की जिम्मेदारियां हैं तो उनको निभाने के लिये उसमेंं मन लगाना ही चाहिये। अगर उनसे बचने का प्रयास करेंगे तो वह भी संभव नहीं है, इसलिये उसमें मन लगाकर जूझना चाहिये। अगर जीवन में जिम्मेदारियों से बचना है तो फिर उनके बारे में सोचने से अच्छा है कि वैराग्य पहले ही लें और गृहस्थी न बसायें पर अगर बसा ली है तो उससे भागना संभव नहीं है। कहने का तात्पर्य है कि अगर हमने विषयों को ओढ़ लिया है तो उसमें अपनी बुद्धि के अनुसार चलना चाहिये न कि उनसे बचने का प्रयास करते हुए तनाव को आमंत्रण दें। अगर उनसे बचना है तो पूरी तरह से वैराग्य लेना चहिये
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हम भारत, भारती, और भारतीयता के संवाहक हैं और धर्मनिरपेक्षता तामस गुण की
पहचान है(भाग एक) we have an Bharat.,Bharati, bhartiyata Thought, Seculisma
is Tanasi type (part-1)
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पहले तो प्रश्न यह है कि क्या हम सर्वधर्म समभाव की विचाराधारा से सहमत हैं?
जवाब अगर हां है तो फिर यह समझाना पड़ेगा कि धर्म का आशय क्या है? भारत
विश्वगुरु है...
5 years ago
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