नोटबंदी पर हमारा नजरिया सबसे अलग रहा है। मजे की बात यह कि जिस किसान, मजदूर और गरीब की दुर्दशा पर नोटबंदी के विरोधी आंसु बहा रहे हैं उसी के खोये मनोबल की वापसी की आशा में समर्थन कर रहे हैं।
एक बार हम बिजलीघर गये थे तो एक निम्न मध्यमवर्गीय अशिक्षित महिला पांच सौ का नोट दिखाकर बोली‘-साहब हमारा यह नोट देखना नकली तो नहीं है। बड़ा डर लगता है क्योंकि इसका नंबर बिल के पीछे लिखाकर लाई हूं।’
हमने कहा-‘सच बात तो यह है कि हमें भी समझ नहीं है। फिर भी देख लेते हैं।’
पास में ही एक सज्जन खड़े थे उन्होंने कहा‘लाओ मैं देखता हूं।’
उन्होंने देखा और फिर कहा-‘यह असली है।’
पानी और बिजली के बिलों पर पांच सौ और हजार के नोटों का नंबर लिखकर देना एकदम सामान्य बात लगती है पर हमें अपने ही देश की मुद्रा के प्रति ऐसा अविश्वास हमारा ही मनोबल गिराता है। बिल जमा कर घर वापस आने पर भी चिंता सताती थी कि कहीं वहां नकली नोट निकलने की सूचना न आ जाये।
हम जब किसी को पांच सौ या हजार का नोट देते थे तो वह उलट पलट कर देखता था तो हम कहते थे कि ‘भई, यह नोट हम एटीएम से निकाल कर लाये हैं।’
सीधा जवाब मिलता कि ‘एटीएम से भी नकली नोट निकलते हैं।’
एक आदमी तो हमसे कह रहा था कि बैंकों की गड्डी जो एटीएम में डाली जाती है उसमें सौ में चार नकली होते हैं। हमारे एक दोस्त ने बताया कि उसे एटीएम से पांच सौ के नोट निकालकर अपने किसी जीवन बीमा एजेंट के पास देने गया तो उसने बताया कि दो नोट नकली है। उस मित्र ने जैसे तैसे उनको कहीं चला दिया। एक मित्र ने बताया कि उसने सीधे बैंक से हजार के पांच नोट निकाले और जीवन बीमा कार्यालय में जमा कराने गया। वहां उसे दो नोट नकली बताकर वापस किये गये। वह बैंक आया तो रोकड़िया ने साफ मना कर दिया कि उसने दिये हैं। यह तो गनीमत थी कि इस गतिविधि के दौरान दो अन्य साथी भी थे। उन्होंने पुलिस मेें रिपोर्ट लिखाने क बात कही तो शायद बात बन गयी थी।
इस नकली मुद्रा का प्रकोप इतना था कि हमारे एक मित्र को कहीं से किसी ने 25 हजार कर्ज की वापसी में 5 सौ और हजार के नोट दिये थे। हमने उससे कहा कि-‘तुम इनको बैंक में जमा क्यों नहीं करते?’
उसने कहा-‘मैं पागल नहीं हूं। बैंक में कहीं इसमें से कोई नकली निकला तो परेशानी हो सकती है। मैं तो इन्हें घर खर्च में लूंगा।’
उस दिन बैंक में पासबुक पर एंट्री कराने गये तो वहां एक अर्द्धशिक्षित वह निम्न मध्यमवर्गीय लड़का हजार के चार नोट पास लाकर बोला-‘सर, आप चेक कर दें इनमें से कोई नकली तो नहीं है।’
मैंने उससे कहा कि ‘तुम कैशियर के पास जाओ। वह बता देगा।’
उसने कहा-‘सर, अगर नकली हुआ तो वह कहीं पुलिस को न बुला ले।’
हमने उससे कहा-‘तुम यहां किसी दूसरे को दिखा दो मुझे इसका ज्यादा अनुमान नहीं है।
एक नहीं ऐसी अनेक घटनायें हुईं जिसमें किसान, मजदूर और महिलाओं को नकली नोटों से भयभीत देखा-सभी घटनाओं का वर्णन करना बेकार है। इन घटनाओं ने हमारे अंदर देश की मुद्रा के प्रति अविश्वास भर दिया था। एटीएम से निकले हजार या पांच सौ के नोट पहले खर्च करते थे। जेब में सौ के पांच नोट हो तो भी हम पेट्रोल पंप या अन्य कहीं दो सौ के भुगतान के लिये पांच सौ या हजार का नोट पहले देते थे। हमार सारे भुगतान बैंक में ही आते थे इसलिये कहीं से नकली मुद्रा प्राप्त होने की आशंका नहीं थी। अगर कहीं हजार का नोट देने पर पांच सौ का नोट मिलता था तो चिंता हो जाती थी कि यह असली है या नहीं।
कभी अपने हाथ से बैंक या पोस्ट आफिस में हजार या पांच सौ का नोट नहीं दिया। नोटबंदी के बाद हम अपना आखिरी हजार का एक तथा पांच सौ के तीन नोट लेकर बैंक गये तो कैशियर ने जब तक उसको दराज में नहीं रखा तब तक हमारा दिल धक धक कर रहा था कि कहीं नकली न निकले। कहा जाता है कि पैसा कुछ करे या नहीं पर वह आत्मविश्वास पैदा करता है मगर बड़े नोट तो हमें चिंतित किये देते थे। यह एक अप्राकृतिक स्थिति थी। अब दो हजार और पांच सौ नोट आने पर हमारा हृदय प्रसन्न नहीं है। इसलिये तय किया है कि अपने बड़े भुगतान अब डेबिट कार्ड से ही करेंगे। ऐसा नहीं है कि नोटबंदी का कष्ट हम नहीं झेल रहे पर नकली मुद्रा से तनाव की मुक्ति राहत भी दिला रही है। नकली मुद्रा का अंश असली के साथ कितना था, कम था या ज्यादा, आदि प्रश्नों से हमारा कोई लेना देना नहीं है। हमारा मानना है कि उससे समाज में अनेक लोगों का मनोबल गिरा हुआ था जो कि देश के लिये अच्छी बात नहीं थी। एक योग तथा अध्यात्मिक साधक होने के कारण हमें मन के खेल का पता है और इसलिये ही नोटबंदी का समर्थन करते हैं।